Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिस  निगाह  से  बचने  में मेरी उम्र गुजरी

शामे-जिंदगी  मुझे  उसी  से मुहब्बत हो गई

गमे    दो     जहां    क्या    कम    थे

जो  राहत  में  एक  और  मुसीबत  हो गई

उसके   नजदीक  तसलीमों-रजा कुछ  नहीं

मुझे  सितम पर सब्र करने की आदत हो गई

जिसने दिल खोया,उसी को कुछ मिला,फ़ायदा

जब  देखा  नुकसान  में तब दिक्कत हो गई

इश्क आग नहीं जो राख में दवा देता,मुहब्बत

की  इबादत2 में शराब पीने की आदत हो गई

  1. आत्म स्वीकृति  2. पूजा

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