Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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‘बारूद पर अमन’

बारूद के ढेर पे बैठी दुनिया

अमन शान्ति चाहती

लेकर हाथों में अग्नि

परमाणु बम है बनाती

दो युद्धों की लड़ाई से

जो मची तबाही थी

भूल गयी दुनिया

कितनी दहशत तब

इस धरती पर छायी थी

अब आगे भी क्या मुमकिन है

ऐसी दहशत फिर नहीं आयेगी

जिसको रोक न सकी दुनिया

क्या फिर से नहीं दोहरायेगी

बारूद के ढेर पे बैठी दुनिया

लिबास लिये अमन चैन का

शम का आँचल ओढ़े

ज्वालामुखी सी शान्त

पर अन्दर से लावे का गुबार लिये

विस्फोटित होने को कभी

विस्मय की मार लिये

समरसता की बीन बजाती

बारूद के ढेर पे बैठी दुनिया

चाहती अमन रहे इस धरती पर

फिर विध्वंश न हो कालजयी

पर चिंगारी हाथ लिये

दुनिया चाहती शान्ति रहे

जो नामुमकिन सा लगता है अब

स्वप्नलोक के सपनों सा

बारूद के ढेर पे बैठी दुनिया

आज बची हुई है जैसे-तैसे

पिछले विध्वंशों से 

अपने भविष्य को बचाकर

पर कल को होगा एक और विध्वंश

पहले दो मारो को

झेल गये दम खाकर

अगली बारी घनघोर मचायेगी

अमन शान्ति चाहने वालों

परमाणु बम बनाने वालों

जरा सुन लो कान लगाकर

अब की बारी युद्ध के वार से

इस धरती पर मानव सभ्यता

जड़ से ही मिट जायेगी

बारूद के ढेर पे बैठी दुनिया

कब तक खैर मनायी

अमन शान्ति चाहने वालों

बम की होली जलाने वालों

अब नहीं रुके तो

यह धरती स्वर्ग से सुन्दर

एक और मंगल

लालग्रह बंजर सी बन जायेगी।

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