Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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महान मूल्यों वाला देश भारत, आरम्भ काल से ही सभ्य देशों में गिना जाता रहा है । हर देश के मानव-समाज की अपनी अलग पहचान बनती है ; उसका अतीत कैसा था, वर्तमान क्या है तथा भविष्य में उसका रंग-ढ़ंग कैसा होगा या हो सकता है ; इस सब की जानकारी, उसकी सभ्यता और संस्कृति के लक्षणों से ही संभव हुआ करती है । संस्कृति का अर्थ होता है, चिंतन तथा कलात्मक सृजन की वे क्रियाएँ, जो जीवन को समृद्ध बनाती हैं । संस्कृति ( कल्चर) शब्द का उल्लेख ,यजुर्वेद में किया गया है । सभ्यता ( अर्थात सिविलाइजेसन) शब्द 17 वीं शताब्दी से मिलता है । कुछ विद्वानों ने सभ्यता और संस्कृति को पर्यायवादी माना ; किन्तु दोनों में भेद है । सभ्यता एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसके द्वारा मानव की जीवन-यात्रा सरल होती है और संस्कृति अपने आप में एक अत्यन्त कोमल, सूक्ष्म और भावात्मक शब्द है, जिसका सम्बंध बाह्याचारों से न रहकर मानव-जीव की आत्मा, भावना और सूक्ष्म आंतरिक विचारों से हुआ करता है । यही कारण है, कि विद्वानों ने सभ्यता को गेहूँ और संस्कृति को गुलाब नाम दिया है । गेहूँ एक ठोस पोषण तत्व है, जब कि गुलाब एक अत्यंत कोमल और सुंदर तत्वों का परिचायक है । गुलाब का महत्व केवल, उसकी कोमलता और बाहरी सुंदरता के कारण नहीं होता , बल्कि उसकी सुगंधि के कारण भी होता है जो उसमें समाई रहती है , वायु के साथ उड़कर कुछ ही क्षणों में आस-पास के सारे वातावरण को भी सुगंधित बना देती है । इस प्रकार संस्कृति का तात्पर्य किसी राष्ट्र और जाति की उस भावनात्मक सुंदरता तथा आंतरिक उर्जा से रहता है,जो अपनी गुणवत्ता की सूक्ष्म डोर में अनेक भेद रहते हुए भी सारे राष्ट्र को आंतरिक एकता के रूप में बाँधे रखती है । भारतीय संस्कृति इसी अर्थ में महान है ।

 


भारतीय संस्कृति के प्रचार और प्रसार का सर्वाधिक श्रेय उन साहसी और उत्साही भारतवासियों से है, जिन्होंने विदेश गमन कर विभिन्न देशों में भारतीय उपनिवेशों की स्थाई रूप से स्थापना की है । इन उपनिवेशों ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रधान केन्द्रों के रूप में विशेष सफ़लता प्राप्त की तथा अपने सम्पर्क में आनेवाली जातियों को भारतीय संस्कृति, सभ्यता और धर्म से पूर्णतया प्रभावित किया । भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रसार का अवलोकन निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है । मध्य एशिया में विभिन्न जातियों के निवास और उनकी संस्कृति के अवशिष्ट अवशेषों के लिए प्रसिद्ध है । मौर्य साम्राज्य के विस्तार , सम्राट अशोक के धर्म प्रचार तथा कुषाण शासकों के इस भाग पर अधिकार होने के कारण भी भारत का मध्य एशिया के साथ घनिष्ट सम्पर्क स्थापित हो गया था ।

 


भारतीय संस्कृति की मुख्य विशेषता रही है, समन्वयवाद की चेतना तथा सहिष्णुता । भारत की अनेक देवी-देवताओं की पूजा तथा उपासना ,अनेक दार्शनिक सिद्धान्तों जैसे जैन,बौद्ध आदि धर्मों का उद्गम-स्थल है । वर्ण-व्यवस्था,आश्रम व्यवस्था आदि हमारी संस्कृति की मौलिक व्यवस्थाएँ हैं ; आध्यात्मिकता इन सबों में ऊपर है । आज की युवा-पीढ़ी की सोच में परिवर्तन हुए हैं ; वे अब विग्यान, चिकित्सा, कम्प्यूटर तथा तकनीक क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व रखते हैं ।

 

 

श्रीमद भागवद्गीता, भारतीय संस्कृति का महानतम ग्रंथ है । यह ग्रंथ हिन्दू के सभी ग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ धर्म-पुस्तक है । इसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जिस निष्काम कर्म की शिक्षा दी है, वह मानव समस्या का स्थाई समाधान करती है । भारतीय संस्कृति योग की संस्कृति न होकर ,त्याग की संस्कृति है ; इसमें संकीर्णता नहीं, गरिमा है ,जो हमारी संस्कृति को आज भी जिंदा रखी है । हमारी भारतीय संस्कृति का सिद्धान्त है-----


मातृदेवो भव: , पितृदेवो भव: ,आचार्यदेवो भव: ; अतिथिदेवो भव: ।

 

 

 

ऐसा मानना है कि भारत का इतिहास सिंधुघाटी की सभ्यता के जन्म से आरम्भ हुआ है और दूर से सोचा जाय ,तो हड़प्पा से है जो कि दक्षिण एशिया के पश्चिमी हिस्से में लगभग 2500 बी० सी० में फ़ली-फ़ूली ; जिसे आज पाकिस्तान या पश्चिमी भारत कहा जाता है । सिन्धुघाटी सभ्यता मूलत: शहरी सभ्यता थी ; जहाँ रहने वाले लोग सुयोजनाबद्ध और सुनिर्मित कसबों में रहा करते थे, जो व्यापार के केन्द्र भी थॆ । मोहन-जोदाड़ो, और हड़प्पा के भग्नावेश दर्शाते हैं कि ये व्यापारिक शहर वैग्यानिक दृष्टि से बनाये गये थे । यहाँ चौड़ी सड़कें और पानी के निकास के लिए पक्की नालियाँ बनाई गई थीं । घर पकाई गई ईंटों से बने होते थे । ये दो या तीन मंजिला भी हुआ करते थे । इसके नष्ट होने के प्रचलित अनेकों कारण हैं ,जिनमें आर्यों द्वारा लगातार आक्रमण , लगातार बाढ़ तथा अन्य प्राकृतिक विपदाओं के साथ भूकंप भी है ।

 

 


भारतीय संस्कृति ने अपने सामर्थ्य से जिस प्रकार अतीत में मानवता की रक्षा की है, भविष्य में भी कर सकेगी ; इसमें जरा भी संदेह नहीं । अन्य देशों की भौतिकता से थकी-मांदी संस्कृतियाँ इस देश की ओर देखने के लिए बाध्य हो रही हैं ; यह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है ।


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