Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बात हो गर सपनों की तो मैं कभी रुकती नहीं।
बाँध दो बेड़ियों से या जकड़ लो जंजीरों में,
बात हो गर सपनों की तो उन्हें तोड़ने से डरती नहीं।
बिछे हो पथ में कांटे हज़ार या हो घना अंधकार,
बात हो गर सपनों की तो मैं कमजोर पड़ती नहीं।
अब तक मशहूर हूँ नहीं माना पर कोशिशों में कमी करती नहीं।
लाखों रास्ते हो भटकाने वाले पर जो मैं अपनी राह पे चल दू तो भटकती नहीं।
आँधियाँ चले या आए तूफान जो मैं चल दू तो फिर थमती नहीं।
रास्ता भी जो बंद हो तो नदी बन बहने से बचती नहीं।
बात हो गर सपनों की तो अथक प्रयासों से भी मैं हिचकती नहीं।
कहे पागल कोई या सनकी ही क्यों ना कह जाए,
बात हो गर सपनों की तो मैं किसी की सुनती नहीं।
हूँ एक पौधा महज़ जो बनना हैं पेड़ मुझे तो बरसात से भी घबराती नहीं।
बात हो गर सपनों की तो कमल बन कीचड़ में खिलने से भी झिझकती नहीं।
बात हो गर सपनों की तो लहरों से भी ये कश्ती मुड़ती नहीं।
बात हो गर सपनों की तो मैं कभी रुकती नहीं।

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