हमने न महल रक्खे, हमने न किले रक्खे।
खुशियों की तरह हमने, जो दर्द मिले, रक्खे।
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आया जो सितमगर तो, सर तुम ने झुकाया है,
ये बात नहीं अच्छी, तुम होंठ सिले रक्खे।
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देखा न कहीं ऐसा, जैसा है हुनर उसका,
थैले में बड़ा है कुछ, जेबों में जिले रक्खे।
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पैगाम मिला दिल को, आना है सनम तुम को,
कुछ काँटे हटाए हैं, कुछ फूल खिले रक्खे।
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जो बात रही दिल में, सो ‘सिद्ध’ सुना दी है,
कुछ तुम भी सुना देते, जो शिकवे-गिले रक्खे।
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– ठाकुर दास ‘सिद्ध’
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