Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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1ः-
आडम्बर ही
पर्व दिखने लगे,
आधुनिकता
2ः-
सामाजिकता
गिट-पिट करना,
अन्धानुकरण।
3ः-
पराजय है
मोह में अंग्रेजी से,
आज हिन्दी की।
4ः-
सूर्य निकला
समय से पहले,
आंखें ही नहीं।
5ः-
हम श्रेष्ठ थे
क्षण भर में शून्य,
आगे कितना।
6ः-
आयोजन हैं
सुविधाओं के लिए,
गरीब मिटे।
7ः-
आफिस तेज
अफसर निस्तेज
कितना फल।
8ः-
कहते सब
कितने करते हैं,
आदत जन्य।
9ः-
छुप जाती है
अन्दर सफेदी के,
मक्कारी भी।
10ः-
पहचान जो
अस्तित्व मिटाकर
अपना स्वार्थ।
11-
उन्नति हुई
आगे भी बढ़ें हम
भ्रष्ट होकर।
12-
क्रुर है कौन
विध्वंस ही विध्वंस
प्रकृति मौन।
13-
सोचिए तब
सर्वस्व अपना हो
रुला के जन।
14-
क्या हैं हुआ
प्रगति कर गए
स्वंय बिके।
15-
आज के सर्प
नेताओं को न डसें
भय मृत्यु का।
16-
तिगड़म वाज
प्रर्वतण्ठत होते
आज पदों पें।
17-
सरकती न
चाय नाश्ते बिन
आज फाइलें।
18-
परिक्रमा हो
कामद गिरी जैसी
कार्य के हेतु।
19-
मिलें न साब
अपनी कुर्सी पर
सुविधा शुल्क।

20-
आज के केस
बढ़ते ही जाते हैं,
अगली पीढ़ी।

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