मोहब्बत में अश्क की कीमत कभी कमती नहीं
अंधेरे में रहकर भी रोशनी कभी मरती नहीं
नजरों का यह धोखा है, वरना
आसमां से धरती कभी, कही मिलती नहीं
चिनगारी होगी राख में दबी तो धुआँ उठेगा ही
मोहब्बत की आग कभी छिपती नहीं
कहते हैं यह घर भूत का डेरा है, हजारों
आत्माएँ रहती यहाँ, तभी यह ढहती नहीं
जिंदगी एक जंग है, हर साँस पर फ़तह होगी
ऐसी तकदीर ,किसी को कभी मिलती नहीं
कौन कहता इश्क में हर मंजिल इन्किलाब है
आशिक की नीयत कभी बदलती नहीं
ऐसी मुहब्बत को हम क्या कहें, जहाँ आँखें
तो मिलती हैं, मगर नजरें कभी मिलती नहीं
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