Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ढलती साँझ
अलसाया आसमां
रक्तिम सूर्य।

कोरी चूनर
रंग गई फ़ाग में
लाल गुलाल।

दर्द का रंग
टूटा और आहत
लगे बेरंग।

हरी कोंपल
उम्मीद का दामन
आशा का रंग।

लाल रंग
चैतन्य का स्वरुप
देवी का रूप।

नील लोहित
समंदर विशाल
समय काल।

रंगा यौवन
गाल पर गुलाल
ओंठ पलाश।

रंग बसंती
आज़ादी की बहार
देश से प्यार।

चेहरे जर्द
मन पुती कालिख
इंसानी रंग।

गोरी के अंग
साजन सतरंग
हिना के संग।

रोटी का रंग
कितना बदरंग
गरीब तंग।
हाइकु-58
सुशील शर्मा

ओस की बूंदें
चमकती मोती सी
घास पे सोतीं।

कोहरा घना
ठण्ड में सिकुड़ता
वो अनमना।

ठंडी चादर
कोहरे का लिबास
ओढ़े सुबह।

जले अलाव
गांव के आँगन में
लगी चौपाल।

पूस की रात
ठिठुरती झोपडी
सिकुड़े तन।

प्यारी सुबह
कोहरे की रजाई
ओढ़ के आई।

एक तपन
अलाव अलगाव
एक चुभन।

हिम का पात
शीत कालीन छुट्टी
सैलानी मस्त।

जाड़े से लदी
कुहरे का आँचल
ठिठुरी नदी।

रश्मि किरण
ओस बिंदु पे पड़ी
मोती की लड़ी।

सुशील शर्मा
हाइकु-60
*मृगतृष्णा*
सुशील शर्मा

मृगतृष्णा सी
कितनी भटकन
तेरी चाहत।

शब्द संगीत
थिरकती कविता
लय का नृत्य।

चाँद समूचा
दरिया सा बहता
रूप में तेरे।

रूप तुम्हारा
तुलसी का विरबा
मन को प्यारा।

थकी सी नींद
महकती धूप में
आँखों पे सोई।

फिर निकला
भागता सा सूरज
सहमी ओस।

आँसू की बूँद
बनी है समंदर
डूबता मन।

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