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गज़ल
डॉ. तारा सिंह
डॉ. तारा सिंह
हर रोज बेटी, शूली चढ़ाई जाती है
जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो
दीखता मंजिल नहीं
तुम खफ़ा हो गये
खुदा तेरी बागे-जहाँ में
खुदा तेरी बागे-जहाँ में
माना कि तेरे दीद के नहीं काबिल
मेरा घर, तेरे घर से दूर तो था
आगे आता था इश्के- बेकसी पे रोना
इक तू नहीं साथ, गम सारा मेरे साथ है
रात जागे हैं, नींद आती नहीं
कैसे कहूँ दिले हाल
गमे-दिल किससे कहे, कोई गमख्वार नहीं मिलता
जाने वाले मिट जाते हैं, फ़ना नहीं होते
जाने वाले मिट जाते हैं, फ़ना नहीं होते
तकल्लुफ़ शराफ़त का निशां है
तकल्लुफ़ शराफ़त का निशां है
तकल्लुफ़ शराफ़त का निशां है
तस्वीर बदल लेने से तकदीर नहीं बदलती
तुम बिन जाऊँ तो कहाँ जाऊँ
तुम क्या खफ़ा हुए
दिल में दिल बनकर रहता हूँ, फ़िर भी
रुख बदलकर मौजें तुफ़ां हो गईं
ले जाओ मेरे सीने से दिल निकाल के गिरे न
तस्वीर बदल लेने से तकदीर नहीं बदलती
तुम बिन जाऊँ तो कहाँ जाऊँ
राह वही, राही बदल गये
जिंदगी की शाम ढ़लने लगी
तुम क्या खफ़ा हुए, जमाना खफ़ा हुआ
दिल में दिल बनकर रहता हूँ
रुख बदलकर मौजें तुफ़ां हो गईं
ले जाओ मेरे सीने से दिल निकाल के गिरे न
राह वही, राही बदल गये
जिंदगी की शाम ढ़लने लगी
जो तुम हसरते - दीदार1 का इजहार न करती
जो पूछो तुम हमसे, हम क्या करते हैं
कुछ गम तुमने दिये, कुछ
कहते हैं मेरे दोस्त, मेरा सूरते हाल
जो तुम हसरते - दीदार का इजहार न करती
जो पूछो तुम हमसे, हम क्या करते हैं
दरे-कबूल1 से टकराकर रह गई, दुआ मेरी
ऐ हुजूमे-गम, जरा संभलने दे, इस बीमार को
ऐ हुजूमे-गम, जरा संभलने दे, इस बीमार को
अपने इश्क का इम्तिहां चाहता हूँ
साकिया उठा दे परदा आज तू रात के राज से
आज रात ठहर जाओ यहीं
शबे-वस्ल1 की खुमार अभी बाकी है
गैर की जिक्रे-वफ़ा पर जलता दिल
आरजू थी कि आज का जाम, हम तुम्हारे नाम करें
आओ! हम एक दूजे से लगकर बैठें
कर याद अपनी बेवफ़ाई, नींद उड़ जाती है
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने जाना
उजड़ी पड़ी दिल की बस्ती को
कैसे कहूँ किस्मत, शबाब को क्यों ले आई
कोई तो दर्द - मंद, दिले - नासबूर बनकर
तेरा आँचल पकड़कर कब तक सरकता रहूँ मैं
ऐ नूर, तू चिरागे राह है, मुसाफ़िरे मंजिल नहीं
एक बेवफ़ा, नज़र से दिल में उतर गई
उस बेवफ़ा को हम आज भी याद करते हैं
गमे-दिल किससे कहे, कोई गमख्वार नहीं मिलता
रुख बदलकर मौजें तुफ़ां हो गईं
हमसे मत पूछ, मुहब्बत में क्या पाया
गैर से रात क्या बनी, तुम खफ़ा हो गये
हो जिसकी मुहब्बत, फ़कत मस्ती-ए किरदार
ऐ हुजूमे-गम, जरा सँभलने दे, इस बीमार को
इक तू नहीं साथी, गम सारा मेरे साथ है
गैर की जिक्रे-वफ़ा पर जलता दिल, वो क्या जाने
खुदा तेरे बागे-जहां में बहती यह कैसी हवा है
तेरा गुरूर तुझे कहाँ ले आया
कहते हैं मेरे दोस्त, मेरा सूरते हाल देखकर
किस्मत में डूबना लिखा है, तो
तुमको शर्म आती नहीं, आशिक से
तुम्हारी यादों के जख्म जब भरने लगते हैं
आगे आता था इश्के- बेकसी पे रोना
रात जागे हैं, नींद आती नहीं
चोरी- डकैती, खून-खराबा, अपना मान हुआ
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो
किसने मेरे दिल के बुझे दीये को जला दिया
जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो
चिरागे - राह तो है, दीखता मंजिल नहीं
गैर से रात क्या बनी, तुम खफ़ा हो गये
खुदा तेरी बागे-जहाँ1 में बहती यह कैसी हवा है
माना कि तेरे दीद के नहीं काबिल, हूँ मैं
मेरा घर, तेरे घर से दूर तो था, पर उतना दूर नहीं था
खुदा तेरी बागे-जहाँ में बहती यह कैसी हवा है
माना कि तेरे दीद के नहीं काबिल, हूँ मैं
इक तू नहीं साथ, गम सारा मेरे साथ है
रात जागे हैं, नींद आती नहीं
गमे-दिल किससे कहे, कोई गमख्वार नहीं मिलता
जाने वाले मिट जाते हैं, फ़ना नहीं होते
तकल्लुफ़ शराफ़त का निशां है
तस्वीर बदल लेने से तकदीर नहीं बदलती
तुम क्या खफ़ा हुए, जमाना खफ़ा हुआ
रुख बदलकर मौजें तुफ़ां हो गईं
ले जाओ मेरे सीने से दिल निकाल के गिरे न
राह वही, राही बदल गये
जिंदगी की शाम ढ़लने लगी
जो तुम हसरते - दीदार का इजहार न करती
जो पूछो तुम हमसे, हम क्या करते हैं
कुछ गम तुमने दिये, कुछ आसमानी है
जो पूछो तुम हमसे, हम क्या करते हैं
कुछ गम तुमने दिये, कुछ आसमानी है
दरे-कबूल से टकराकर रह गई, दुआ मेरी
ऐ हुजूमे-गम, जरा संभलने दे, इस बीमार को
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
जिक्र मेरा मुझसे बेहतर है, उस महफ़िल में हो
तकल्लुफ़ शराफ़त का निशां है
चिरागे - राह तो है , दीखता मंजिल नहीं
जिसके जल्वे से जमीं –आसमां सर-शार है, हमने
तुम बिन जीकर देख लिया
दिले बेताब को जुल्फ़ों में उलझाया न करो
नजर मिलते ही तुमसे,हमारे ईमान गये
दुनिया ने तेरी यादों से हमको बेगाना किया
भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो
मस्ती – ए - शराब, ख्वाब में जिस सूरत से
आपको मेरे दिल की क्या खबर
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
क्या हम जिसे जानते हैं
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
जो तुमको अपने दिले– दुश्मन की महफ़िल में
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
बदल चुका है अहले- दर्द का दस्तूर
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब को क्यों ले आई
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
जिसके जल्वे से जमीं –आसमां सर-शार1 है, हमने
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
तुमको क्या गरज, कि उस बेअदब को
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
जिसके जल्वे से जमीं –आसमां सर-शार1 है, हमने
जाने वाले मिट जाते हैं
तकल्लुफ़ शराफ़त का निशां है
दिल में दिल बनकर रहता हूँ
रुख बदलकर मौजें तुफ़ां हो गईं
कहते हैं मेरे दोस्त, मेरा सूरते हाल देखकर
दरे-कबूल से टकराकर रह गई, दुआ मेरी
आरजू थी कि आज का जाम, हम तुम्हारे नाम करें
आओ! हम एक दूजे से लगकर बैठें
कर याद अपनी बेवफ़ाई, नींद उड़ जाती है
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
कर याद अपनी बेवफ़ाई, नींद उड़ जाती है
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
उजड़ी पड़ी दिल की बस्ती को, तुम बसा दो
तेरा आँचल पकड़कर कब तक सरकता रहूँ मैं
ऐ नूर, तू चिरागे राह है, मुसाफ़िरे मंजिल नहीं
एक बेवफ़ा, नज़र से दिल में उतर गई
उस बेवफ़ा को हम आज भी याद करते हैं
गमे-दिल किससे कहे, कोई गमख्वार नहीं मिलता
हमसे मत पूछ, मुहब्बत में क्या पाया
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
हमने तुम्हारी बेरुखी संग जिंदगी गुजार दी
मैकदे1से निकलकर कहाँ जाऊँ मैं
क्या कयामत है
खुदा जाने,इश्क की तबीयत जीस्त का मजा
ए दिल पोछ ले अश्क अपना
कर याद अपने बर्बादे मुहब्बत,हम बहुत रोये मगर
चाहा था इस रंगे- जहां में अपना एक ऐसा घर हो
जो तुमको अपने दिले– दुश्मन की महफ़िल में
जो तुमको अपने दिले– दुश्मन की महफ़िल में
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
क्या भूलूँ , क्या याद करूँ
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब को क्यों ले आई
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
कहते हैं मेरे दोस्त
कैसे कहूँ दिले हाल अपना, बेरुखी पे तुली
उसे मुरव्वत कैसी, वादा कर , वादे से
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
चमन में रहकर भी, बहारसे दूर रहे हम
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो
जबां पर हम ला न सके वो अफ़साना
चोरी- डकैती, खून-खराबा, अपना मान हुआ
हर शाम बैठकी, बिठाई जाती है
चोरी- डकैती, खून-खराबा, अपना मान हुआ
हर शाम बैठकी, बिठाई जाती है
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
अक्सर हमारे ही साथ ऐसा
अब आता नहीं मजा
आओ ! हम एक दूजे से लगकर बैठें
आगे आता था इश्के- बेकसी पे रोना
आप जो देख रहे
आरजू थी कि आज का जाम
इक तू नहीं साथ, गम सारा
उजड़ी पड़ी दिल की बस्ती को ,तुम बसा दो
उनके दिये जख्म सभी, जब मुस्कुराने लगे
कहते हैं मेरे दोस्त, मेरा सूरते हाल
कैसे कहूँ दिले हाल अपना
खुदा जाने,इश्क की तबीयत जीस्त1 का मजा
कैसे कहूँ दिले हाल अपना
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब को क्यों ले आई
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
उसे मुरव्वत कैसी, वादा कर , वादे से
ए दिल पोछ ले अश्क अपना
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
तुम पे मरता हूँ इतना भी नहीं
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
जो तुमको अपने दिले– दुश्मन की महफ़िल में
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
क्या कयामत है, सभी हमीं को बुरा कहते हैं
कैसे उजड़ गई वह दुनिया मेरी, जिसे मैंने
कैसे उजड़ गई वह दुनिया मेरी
सभी हमीं को बुरा कहते हैं
जाने वाले मिट जाते हैं, फ़ना नहीं होते
गैर की जिक्रे-वफ़ा पर जलता दिल, वो क्या जाने
गमे-दिल किससे कहे, कोई गमख्वार नहीं मिलता
भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो
जो तुमको अपने दिले– दुश्मन की महफ़िल में
तुमको क्या गरज, कि उस बेअदब को
‘चोरी- डकैती, खून-खराबा, अपना मान हुआ
‘हर शाम बैठकी, बिठाई जाती है
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो
खुदा तेरी बागे-जहाँ में बहती यह कैसी हवा है
गैर से रात क्या बनी, तुम खफ़ा हो गये
चिरागे - राह तो है, दीखता मंजिल नहीं
माना कि तेरे दीद1 के नहीं काबिल, हूँ मैं
मेरा घर, तेरे घर से दूर तो था,
इक तू नहीं साथ, गम सारा मेरे साथ है
रात जागे हैं, नींद आती नहीं
कैसे कहूँ दिले हाल, बेरुखी पे तुली अहले–दुनिया
गमे-दिल किससे कहे, कोई गमख्वार नहीं मिलता
जाने वाले मिट जाते हैं, फ़ना नहीं होते
तकल्लुफ़ शराफ़त का निशां है
तुम बिन जाऊँ तो कहाँ जाऊँ
तुम क्या खफ़ा हुए, जमाना खफ़ा हुआ
दिल में दिल बनकर रहता हूँ, फ़िर भी कहती
दिल में दिल बनकर रहता हूँ, फ़िर भी कहती
रुख बदलकर मौजें तुफ़ां हो गईं
राह वही, राही बदल गये
ले जाओ मेरे सीने से दिल निकाल के गिरे न
धुआूँ-धुआूँ दीखता आपको गुम्बदे – मीना
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
आगे आता था इश्के- बेकसी पे रोना
इक तू नहीं साथ, गम सारा मेरे साथ है
रात जागे हैं, नींद आती नहीं
गमे-दिल किससे कहे
तुझको अपना वतन याद नहीं
तुझको अपना वतन याद नहीं
तुझको अपना वतन याद नहीं
कहते हैं मेरे दोस्त
खुदा जाने,इश्क की तबीयत जीस्त1 का मजा
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
चाहा था इस रंगे- जहां में अपना एक ऐसा घर हो
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब को क्यों ले आई
कर याद अपने बर्बादे मुहब्बत,हम बहुत रोये मगर
ए दिल पोछ ले अश्क अपना
उसे मुरव्वत कैसी, वादा कर , वादे से
गमे-दिल किससे कहे
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
क्या भूलूँ , क्या याद करूँ
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
आरजू थी कि आज का जाम
इक तू नहीं साथ, गम सारा मेरे साथ है
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
बहार से दूर रहे हम
जो तुमको अपने दिले– दुश्मन की महफ़िल में
आपको मेरे दिल की क्या खबर
उसे मुरव्वत कैसी, वादा कर , वादे से
जिसके जल्वे से जमीं –आसमां सर-शार है, हमने
जो तुमको अपने दिले– दुश्मन की महफ़िल में
तेरा आँचल पकड़कर कब तक सरकता रहूँ मैं
कैसे कहूँ दिले हाल अपना
तुम्हारे गालों पे तिल पहले भी था
दिले बेताब को जुल्फ़ों में उलझाया न करो
कैसे उजड़ गई वह दुनिया मेरी
क्या कयामत है, सभी हमीं को बुरा कहते हैं
कर याद अपने बर्बादे मुहब्बत
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
जिक्र मेरा मुझसे बेहतर है
क्या हम जिसे जानते हैं
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
उजड़ी पड़ी दिल की बस्ती को ,तुम बसा दो
आगे आता था इश्के- बेकसी पे रोना
जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो
किसने मेरे दिल के बुझे दीये को जला दिया
खुद के तो हो न सके, मेरा क्या तुम होवोगे
गमे-दिल किससे कहे, कोई
तुमको क्या गरज, कि उस बेअदब को
गमे-दिल किससे कहे, कोई गमख्वार नहीं मिलता
खुदा जाने,इश्क की तबीयत जीस्त का मजा
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
जान की तरह सीने से लगाये रखती
जाने वाले मिट जाते हैं, फ़ना नहीं होते
मेरे दिलकी लगी को जो बुझा देते
जिक्र मेरा मुझसे बेहतर है
कर याद अपने बर्बादे मुहब्बत,हम बहुत रोये मगर
दिले बेताब को जुल्फ़ों में उलझाया न करो
नजर मिलते ही तुमसे,हमारे ईमान गये
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
क्या कयामत है, सभी हमीं को बुरा कहते हैं
तुमको शर्म आती नहीं, आशिक से शर्माते हुए
तू जो न मिली, तो
क्या कयामत है, सभी हमीं को बुरा कहते हैं
गैर की जिक्रे-वफ़ा1 पर जलता दिल, वो क्या जाने
तुझको अपना वतन याद नहीं
खुदा तेरी बागे-जहाँ में बहती यह कैसी हवा है
गमे-दिल किससे कहे, कोई गमख्वार नहीं मिलता
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
तकल्लुफ़ शराफ़त का निशां है
कर याद अपनी बेवफ़ाई, नींद उड़ जाती है
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
तेरा आँचल पकड़कर कब तक सरकता रहूँ मैं
नजर मिलते ही तुमसे,हमारे ईमान गये
दरे-कबूल से टकराकर रह गई , दुआ मेरी
दिले बेताब को जुल्फ़ों में उलझाया न करो
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
नजर मिलते ही तुमसे,हमारे ईमान गये
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
मेरी तरह उसकी भी नींद उड़ जाती तो अच्छा
दरे-कबूल से टकराकर रह गई , दुआ मेरी
भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो
मेरे दिल की लगी को जो बुझा देते
तुम क्या खफ़ा हुए, जमाना खफ़ा हुआ
भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो
जो तुमको अपने दिले– दुश्मन की महफ़िल में
तुम बिन जीकर देख लिया
भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो
तुम बिन जाऊँ तो कहाँ जाऊँ
मेरे दिल की लगी को जो बुझा देते
खुद के तो हो न सके
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
क्या कयामत है, सभी हमीं को बुरा कहते हैं
चाहो तो बना दो, न चाहो तो मिटा दो
तुम्हारे गालों पे तिल पहले भी था
गैर की जिक्रे-वफ़ा पर जलता दिल, वो क्या जाने
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
तुमको शर्म आती नहीं, आशिक से शर्माते हुए
तू जो न मिली, तो हम मर जायेंगे
मस्ती – ए - शराब, ख्वाब में जिस सूरत से
तेरा आँचल पकड़कर कब तक
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
मेरे दिल की लगी को जो बुझा देते
गमे-दिल किससे कहे, कोई गमख्वार नहीं मिलता
जान की तरह सीने से लगाये रखती
गैर की जिक्रे-वफ़ा पर जलता दिल, वो क्या जाने
मेरे दिल की लगी को जो बुझा देते
तुमको क्या गरज, कि उस बेअदब को
तेरे दिये जख्मों के सहारे जी लूँगा
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
तकल्लुफ़ शराफ़त का निशां है
भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो
मैकदे1 से निकलकर कहाँ जाऊँ मैं
तू जो न मिली
आरजू थी कि आज का जाम
गमे-दिल किससे कहे
तस्वीर बदल लेने से तकदीर नहीं बदलती
है भूल मेरी, जो तेरे वादे पे
चिरागे - राह तो है
तुमको तुम्हारा ख़ुदा याद नहीं
तुमको शर्म आती नहीं
नजर मिलते ही तुमसे,हमारे ईमान गये
खुद के तो हो न सके, मेरा क्या तुम होवोगे
कर याद अपनी बेवफ़ाई
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
ऐ हुजूमे-गम ,जरा संभलने दे
गैर की जिक्रे-वफ़ा1 पर जलता दिल
क्या कयामत है, सभी हमीं को बुरा कहते हैं
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
सभी हमीं को बुरा कहते हैं
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
तो क्या हम तुमको बेवफ़ा कहते
जान की तरह सीने से लगाये रखती
तेरा आँचल पकड़कर कब तक सरकता
तुम्हारे गालों पे तिल पहले भी था
तुम्हारे गालों पे तिल पहले भी था
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