Dr. Srimati Tara Singh
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पंकज त्रिवेदी
पंकज त्रिवेदी
बड़ी खामोशी से पाला है, आशियाना हमने
आओ, हमारे रिश्तों के
तुम्हारी कोमल भावनाओं का नशा अजब है
अस्तित्त्व के बिखरे हुए टुकड़ों को
कैसे सूखने लगी है चमड़ी
उमस भरी शाम
मैंने अपने दर्दों से दोस्ती कर ली है
शाम
मेरे शब्द
धवल रंग
मेरे होने न होने के
सुप्रभात.
अलमारी और माँ
मेरी मुस्कराहट
स्मृतियाँ
आसपास बहुत लोग है
तुम्हारी संघर्षगाथा सुनता हुआ
तुम मेरे अज़ीज़ हो
न मैं उदास हूँ न तेरे आसपास भी हूँ
जब भी महसूस करता हूँ ख़ालीपन
यही तो आँगन है
खामोशी ने आकर दस्तक दी
जब भी तुम मुझे बुनती हो
मेरे अज्ञान को भी तुमने
प्यार को भाषा नहीं होती
कितनी सहज सरल हो तुम !
कुछ आँखें हैं
मैं जानता हूँ
औरत
सुबह हो या शाम
हे उदासी
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
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