Dr. Srimati Tara Singh
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कविता
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कविता
गौरव शुक्ल मन्योरा
गौरव शुक्ल मन्योरा
कौन तेरी कर रहा परवाह !!
जागता तू किस लिए है
बस एक तुम्हारे होने से यह
तुम्हारी खातिर मैंने रचना की थी
गीत यह अवसाद के क्यों
मुझको बहुत याद तुम आये
भावुकता का फल भोग रहा हूँ
रुक जाना पथिक मत
जीवन दर्शन
धवल आलोक को पाने चला था
अब क्या कहने को शेष रहा
मैंने जग को जीने की कला सिखाई है
बहन के संबंध पर एक रचना
महाकवि नीरज के महाप्रयाण पर
हम, हैं एक प्राण लेकिन
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर
तुम मिली न होतीं
किस ओर मुझे जाना है
महाकवि नीरज के देहावसान पर
हर जगह तुम हो समाहित
है नहीं गंतव्य का अनुमान
मैं समय हूँ
बिछुड़ के हमसे तुम भी कम नहीं रोये
मैं तुम्हारी लेखनी हूँ
तुम बिन जीवन कितना सूना-सूना था
तुम अक्सर कहती हो
सपनों में तो रोज-रोज तुम चली-चली आती हो
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के देहावसान पर
मेघ से याचना
कवि का धर्म
महाकाव्य कोई अँगड़ाई लेता है मन में
'विज्ञान-कविता ''पदार्थ की संरचना ''
द्रव्य
मतदान करो
अम्ल
मैं आया था द्वार तुम्हारे याचक बन
लवण
क्षारक
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर
जिंदगी में बड़े मजबूर हो गए हैं हम
कब कहा मैंने कि मुझको कवि कहो तुम!
है नहीं गंतव्य का अनुमान
क्या हुआ अगर मैं मंदिर में
व्याध वध पर वध किये जाता निरंतर
पिता
बैठ कहीं निर्जन में
काश! भावना तुमने मेरी जानी होती
तुम बिन जीवन यह भार हुआ जाता है
तुलसीदास पर दो घनाक्षरी
'' आती हो ज्यों तुम ही
महाशिवरात्रि
तुम अक्सर (भाग एक)
' तुम अक्सर '' (भाग दो)
'' तुम अक्सर '' भाग तीन
मन भटकना चाहता है
बिना तुम्हारे कैसे होली खेलें हम
'' साँसों का आना जाना ही ''
ओ मेरे जीवन से असमय जाने वाले
इस दुनिया के रंगमंच पर
यह कवि की शवयात्रा है
है ये किस जन्म का रिश्ता तुमसे
मैं हँसा तो हँस पड़ा था
जब जब तुम करते हो मुझसे
बेटी
माँ
मैंने मृत्युदंड के जैसा जीवन पाया है
प्यार करने को तुझे सौ जनम भी कम होंगे
प्रभु! तेरी माया का देश सरस इतना था
तुम आईं मेरे जीवन में
तूफान उठा यह बीच राह में ही कैसा
आज फिर बारिश हुई
कोरोना महामारी पर
नूतन संवत्सर पर बधाई और संदेश
एससी एसटी ऐक्ट के संबंध में
होली
एक कब की भावना सोई हुई मन में जगाकर
हिंदी दिवस के अवसर पर
सावन के आगमन पर दो छंद
कौन यह मेरे दुखों पर
भगवान राम पर दो घनाक्षरी
प्यार में तेरे मुझे बदनाम होना भी गँवारा
निस्तब्ध निशा
इस धरा से उस गगन तक
रातदिन था ढूँढता फिरता जिसे
कुतुबमीनार
मनाली
अपना गाँव
तुम कौन चेतना पर मेरी छाई हो
पत्नी
कितनी जल्दी हार गये तुम
मेरी किस्मत में तुम नहीं हो मानता हूँ मैं
यदि अपनी पीड़ा कह देना
मेरे इन नीरस गीतों में
एक कश्मीरी सैनिक का पत्र
सच बताना क्या तुम्हें भी है हमारी याद आती?
आज रात फिर आंखों में काटी मैंने
जब तुम कभी अकेली होगी
आज दुनिया को बता दो
जिस दिन से तुमने अपनाया
दुर्विपाक
भूमि पर टिकते नहीं हैं पाँव
तुम हमारे गीत सुनकर मत हँसो
दलित कौन है?
'मित्र '
'हमारी लेखनी से आज कागज पर उतर आओ'
हमारी लेखनी से आज कागज पर उतर आओ'
'गाँधी जयंती पर'
जिंदगी जो थी वो तो जी चुके
इक मेरे चाहने से क्या होगा
इक मेरे चाहने से क्या होगा
याद मैं ही क्यों करूं सब याद तुम भी तो करो कुछ
याद मैं ही क्यों करूं, भाग - 2
याद मैं ही क्यों करूं सब..... भाग - 3
याद मैं ही क्यों करूं सब.... भाग - 4
याद मैं ही क्यों करूं सब.... भाग - 5
'न्यूटन भाई के निधन पर '
मैं तुम्हें मरने न दूँगा
चाय और कविता
मौत एक दिन आनी है आएगी ही
मार डालेगा मुझे जब यह अकेलापन
पूज्य पिताजी के जन्मदिन पर
मैं मरघट में बैठे-बैठे सोच रहा हूँ
क्या जानो मैं क्यों हँसता हूँ
जब आएगा जाने का वक्त
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जयंती पर
यह किसने कह दिया कि बिकती कलम नहीं बाजारों में
हे राम! तुम्हारी कैसी यह माया है?
तुम्हारा छत पे' आना याद आएगा
काश! कोई देखता जी भर हमें
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
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