Dr. Srimati Tara Singh
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गज़ल
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गज़ल
आदर्श गुलसिया
आदर्श गुलसिया
जब निवाला हलाल होता है
मुंसिफ बिके गवाह लगातार बिक गए
दौलत कमा रहे हो मगर भूल ये गए
हिम्मत करो चलो की अकेले सफ़र करें
दर्द भी उसका मसीहा भी वो
जियूं मै देर तलक येअगर ज़रूरी है
होंठों प हर ख़ुशी को सजाने के बाद भी
देर से आने की तू सफाई न दे
जहाँ तेरा मुझे हर सिम्त क्यों बिखरा दिखाई दे..
गमो को अपने तुम सबसे छुपा रखना
बिना उसके मुझे तो एक पल जीना नहीं आता
चमन हर सिम्त मुझको यहाँ बिखरा दिखायी दे
प्यार से देख लें वो अगर एक दिन
इस तरह वो मुझ मैं शामिल है
रहो अब जो तुम बन के मेरे हमेशा
रोक सकते ही नहीं है आप,लहराना मेरा
शज़र
नफरत से पटे दिलों में मौला मोहब्बत की कोई राह कर
सुबह को कर या शाम कर
अब तक गुजरी जो भी शाम थीं
किसी एक के नहीं ,ये जुमले हैं हजारों के
हर सु दिल के सवालातों से घिर गया हूँ मैं
ता उम्र मैं बचता रहा ऐसे रिश्तों की तामीर से
समझाएं क्या लिख लिख के गीत, ग़ज़ल, या रुबाईयों से
गर खुलूस व मोहब्बत का रंग कहीं मिल जाता
पड़ जाती है उसकी आदत ,जो मुश्किलों में करीब होते हैं
ये वक़्त कुछ और है,वो वक़्त कुछ और था
ऐ दौर-ऐ- ज़िन्दगी तूने भी क्या क्या गुल खिलाये
दौर-ऐ- मुफलिसी में किस कदर वक़्त की परतें उधड़ गयीं
ये इश्क भी खुद में इक किताब है
जो गम मिले मुझे अपने रहबर से
इसे नादानी कहूं उनकी
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
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