Dr. Srimati Tara Singh
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गज़ल
नरेन्द्र सहरावत
नरेन्द्र सहरावत
नशे में तर शराबी नोट लाया है
इसे भी , चाल चलने दो
आँख के मेहमान को समझो
जो नज़र से उतार देंगे आप
वो क़बा की जूँ लिपट कर सो गया
ये समंदर , कश्तियाँ ,पतवार सब बेकार हैं
क़त्ल होने से बचा लो ग़र ये सर तो आ जाओ ।।
सहारा ढूँढ लो कोई , किनारा ढूँढ लो कोई
कहीं हल्का-ऐ-दिल में वो अभी आबाद रहता है
अगर ऐसे ,हदों के पार ,ये सरकार जायेगी
कहीं इक , आग का दरिया , दबायें फिर रहा हूँ मैं
नहीं कहता मगर फिर कह गया मैं
मेरा गम कुछ और दिन, सुन ले अगर बाकी रहा
शर्त ये है , जिन्दगी को , आजमाने के लिए
जो करार कभी किया था वो करार नही रहा
बात आई है, समझ में कुछ , इशारों से हमें
जो कहानी, मैं लिखूंगा ,वो कहानी खूब है
क्यूं यहां ,लड़ते झगड़ते हैं ,सभी बेकार में
बेरुखी से ,तो कभी ,दिल के लगाने से मिले
तीर तरकश के सारे तू भी चलाकर देखले
वक़्त से क्या पूछें उसको सब ज़माने याद हैं ||
हमारे, तुम्हारे ,दरूं ,कुछ नहीं जब
गली में ,हमें यूँ ,इशारा ,करे वो
जो तू भी ,इशारे में ये पाज़ेब बजाना छोड़ दे
देखो गहरे दरिया में गोते खाती नाव
कोख़-ऐ-मुस्तक़बिल में जाने क्या छुपा हुआ है
आज, जो ये हवा के, रुख में नरमाई है
गमे-दौरा लिक्खूं के गमे-जाना लिक्खूं आज !!
ये भी एक अदा है उसके अंदाज़ में
वीराने में कहीं महफ़िल सजा ले ,हम ऐसे हैं
जूँ मुददत से मेहमां कोई घर में ठहरा है !!
इतना सा मलाल तो तुझे भी जिंदगानी में रहेगा
जो अपनी रूह से ,अपने किरदार से नहीं डरता
काश ! कहीं एक बस्ती शमां -ओ -परवानों की हो
मुददत तक फिरता रहा
रुबाई
बग़ावत
तू अपनी ड्योढ़ी पर, कहीं मेरा नाम लिख देना
मेरी एक झलक पे , उनको याद जमाने आते हैं
लज्ज़तों के शीशे में , उतर गई आवाम
कान में ये उसने कौन सी बात बताई है
समंदर के सीने पे फिर उतरना चाहता हूँ
मैंने छूकर ,देखें हैं ,किनारे खाब के
मुफ़लिसी में हर काम ,लाचारी सा होता है
दिखावे में दर्द के ,सब हिस्सेदार हैं मेरे दोस्त
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
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