Dr. Srimati Tara Singh
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संजीव ‘सलिल’
संजीव ‘सलिल’
तुमको देखा
लेटा हूँ
दीपमालिके!
विवशता
स्मृति-गीत माँ के प्रति:
जीवन के ढाई आखर को
अटल सत्य गत-आगत फिसलन-मोड़ मिलाएंगे फ़िर हमको
वात्सल्य का कंबल
यह कैसा जनतंत्र...
फहरा नहीं तिरंगा...
कितने अच्छे लगते हो तुम
रूप अपना
झाँक रही है...
सच है
मन से मन के तार जोड़ती.....
बिना नाव पतवार हुए हैं
वेदना पर.…
ज्ञान सुरा पी.…
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
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