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कविता
अभिषेक शुक्ला
अभिषेक शुक्ला
मेरी यादे भी अकसर मेरा रास्ता रोक देती हैं
नाज बतन पे नही करते,है जो
बहुत दे ग़ई खुशीया
बडी मासूमियत से सादगी
अमीरो को चिन्ता है
आँख जब बहाने लगे
मेरे दिल से मेरे शब्द निकलो
एक ऐसी यात्रा को निकलना,है मुझे
जब भी वो हमसे आये,यहा
वो पिघली बर्फ की तरह,निगाह मे
एक गरीब बच्चे की आँख,मे नमी थी
वो गुडिया कितनी भली थी
हर जगह तमाशा सा लगा है
मन मे उमंग रखना चाहिऐ
लिखे थे वादे सडक के,किनारे
आजकल शरीफो के
एक नव अकुरित पौधे को
तेरे भी नसीब है प्यारे
वो कितने अच्छे दिन थे
किसी की आँख मे नमी,अच्छी नही लगती
आपके ही गुनगाये जा रहे,है
आजकल लोग हमसे
रंग नया सा लाऐगा
अब नही कही गम
कुछ तो बात होगी
बहुत याद आते है
कुछ ऐसे भी लोग यहा,रहते है भाई
जख्म से भरे दिल से
अपनो को छोडा
एक जगह खाना का अंबार,लगा देखा है
आज हुआ क्या जो समय,से पहेले उजाला हो,गया
वो सुनहारी धूप की तरह,जगमगा,रहे है
दिल उसको आज भी ढूढता,है
वो कलमकार बहुत मेहनत,से अपनी रचना
यहा भी हारे वहा भी हारे
बात यहा अब देश की क्यो,करता नही कोई
क्या अब ये खेल भी हद,गुजर जाऐगा
सफर जब खत्म होना का नाम ना,ले
तुमको यहा जख्म से
अब मिलता है हर कोई,रोता हुआ
जिस भारत पूरी दुनिया,खौफ खाती है
दिल कुछ हुआ नही
कच्चे घर अब नही शहर,की शान रहे
चरचा मेरी मोहब्बत आम,हो गया
किसने कहा था और मै भी कहूगा
वो सुबह नही फिर आऐगी
रंग अपना दिखने लगे
सपने ही यहा है लगे सच्चे
आँसू से भरी ये तेरी आँखे
जिदंगी जब हमे
दरशक सारे,रोने,लगे,थे
मेरे दिल मे ये,गहरे,निशा छोड,ग़ई
मेरी आँख से नीद,गायब हो ,ग़ई
खुशी भी अब रूलाने,लगी||
इतिहास मे अपना नाम अमर करने वाले
बहुत रुलाती है ये प्याज
देश को खाते रहे देश को खाते रहे
कागज पे लिखते रहे
मैने देखा है अपनो खोते हुये
बहुत दिनो बाद नेताजी हमारे दवार पधारे
ये कुरसी भी क्या क्या खेल दिखाती है
लोग मुझे समझने आये क्यो अपने दिल को लगाता है
असफलता से जो यू डरोगे
एक एक बालर जिसके नाम से खौफ खाता था
साचिन जब खेल से दूर जाऐगे
मुझे जब देर हो जाती
बापू तेरे देश की जनता बेहाल है
रेमन मुसफिर निकलना पडेगा
अब कुछ ना बचा है होनो को
जिदंगी है तो जीना जरुरी है
घर मे रोए मात पिता
आँसू गम को दिखाने लगै
जब आये गम जिदंगी मे
आये जिदंगी मे गम तो गम लिख देना
खुद से डरने लगा हू मै
मेरी मा रो रही थी
गिरकर जिसने संभालना सीखया था
तुझको चाहने की कीमत चुकाने लगे है
वादे जब वो झूठे करने लगे
अपनी इज्जत अपने हाथो से ऊछाल मत
आदत से मजबूर वो बेचारी है
बेली ने जब धोनी का कैच जब छोडा था
मिरे दिल की गहराई मे नही समाते है
मुह मे राम बगल मे छुरी
जिनको देखकर हैरानी होती
हमको कहा पसंद है दबदबके जीना
होती नही उदास कभी दोस्ती की टोली
कबतक सहेगी चुप क्यो रहेगी
तूफा मे किनारा मिलेगा
क्यो करते हो काम जगत मे ऐसे
है कौन यहा जिसकी
प्यार के चक्कर मिलते है धोखे
तेरी याद दिल को तडपा जाती है
रात भर ख्वाब आँखो मे घूमते है
मुझे जिदंगी को समझना नही आया
हर नजर पे राज हो ये जरुरी नही
टूट गया हर इक सपना
हर ख्वाहिश पूरी नही होती
हुआ जो हमसे उसका गम कम नही
हास्य की पुकार खो ना जाये देश
दूर कही जब दिन ढलता है
बनते काम बिगाड जाते है
कुन्दन की काया को नाश होते देखा
रात को दिन कहेगी
शान्ती के मुहल्ले मे
सासो मे खुशीयो को भर लाऔ तुम
जब हम किसी गुस्सा होते है
मिट जाये दरद ऐसा काम करो
आँसू मत लाओ
भूख भी यहा निशा छोड जाती है
बहुत याद आते है बचपन के दिन
आई बचपन की याद सुहानी
कैसा रिश्ता है ये मेरा कैसा है नाता
जिदंगी जब बोझ मे भारी हो जाऐगी
होता नही सबर अब गम के मौसम मे
वादे का क्या
लगता है मेरे कलम के जजबात खो गये है
ना कुछ खोने की इच्छा
चलो ऐसे कि साथ तेरे कोई कहानी चले
मै रहता था खामोश
सूरज की रोशनी हैरा बहुत देखी है
विश्वास नही टूटने देना
आई मेरे पास
मन घायल है
रंगो मे खोले खून ऐसा स्वर बोली मे भरता हू
गुरु ने हमे इंसा बनाया
बहा है खून दारिया
बनते काम जब बिगाड जाते है
बिना सहारा चलने की आदत हो ग़ई
बचपन से लेकर जवानी दुख झेलती आई हो तुम
रात को निकालने डरती है बेटी
मानव के इतिहास मे क्या दिन आया
कभी सासो का अबार लेते जवानी को देखा
एक एक शाट गजब लगाया था
आज मौसम की बेमानी है
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
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