Dr. Srimati Tara Singh
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गज़ल
डा० सुशील गुरू
डा० सुशील गुरू
फिर वही लवरेज़ मंजर तैरता देखा गया
मैं किसी के हाथ की बिगड़ी हुई तकदीर हूॅ,
नयन की भाषा तुम्हारी मोरपंखी गीत का
दीप सागर की सतह पर रात भर जलता रहा
उम्र के हसीन दिन सरहद पर बिताये हमने
इश्क का दरिया बहुत है गहरा
दर्दे दिल में दर्द का कोई निशां होता नहीं
जीते जी रिश्ता-ए-दिलवर तुमसे तोड़ा नहीं गया
जब हमारे गीत रहबर गायेंगे.
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