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गज़ल
डॉ. श्रीमती तारा सिंह
डॉ. श्रीमती तारा सिंह
आपको मेरे दिल की क्या खबर
जान की तरह सीने से लगाये रखती
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो
किसने मेरे दिल के बुझे दीये को
चिरागे-राह तो है,दीखता मंजिल नहीं
गैर से रात क्या बनी,तुम खफ़ा हो गये
खुदा तेरी बागे-जहाँ1में बहती यह कैसी
महफ़िले-हयात में कभी रौनक भी थी
माना कि तेरे दीद के नहीं काबिल
मेरा घर,तेरे घर से दूर तो था
अक्सर हमारे ही साथ ऐसा होता क्यों है
आगे आता था इश्के-बेकसी पे रोना
इक तू नहीं साथ,गम सारा मेरे साथ
रात भर जागे हैं,नींद आती नहीं
कैसे कहूँ दिले हाल अपना,बेरुखी पे
क्या कयामत है,सभी हमीं को बुरा कहते
गमे-दिल किससे कहे,कोई गमख्वार नहीं
चाहो तो बना दो,न चाहो तो मिटा
जाने वाले मिट जाते हैं,फ़ना नहीं होते
मेरे दिल की लगी को जो बुझा देते
जो सुनना चाहते हो,दास्तां हमारी तबाही
तकल्लुफ़ शराफ़त का निशां है
तस्वीर बदल लेने से तकदीर नहीं बदलती
तुम बिन जाऊँ तो कहाँ जाऊँ
तुम क्या खफ़ा हुए,जमाना खफ़ा हुआ
तुम छोड़ आये जहाँ,वो मेरी मंजिल
तुम जिसे बरबाद करो, वह कैसे नहीं बरबाद होगा
तुमको शर्म आती नहीं,आशिक से शर्माते
तुम्हारी यादों के जख्म जब भरने लगते
तू जो न मिली, तो हम मर जायेंगे
तेरे दिये जख्मों के सहारे जी लूँगा
तुमको देखें कि तुमसे हम बात करें
दिल में दिल बनकर रहता हूँ,फ़िर भी कहत
दुनिया मेरी बदल गई,एक उनके आ जाने
रुख बदलकर मौजें तुफ़ां हो गईं
रूह कालिब में दो दिन का मेहमान है
ले जाओ मेरे सीने से दिल निकाल के
राह वही,राही बदल गये
जिंदगी की शाम ढ़लने लगी
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
जो तुम हसरते - दीदार1 का इजहार न करती
जो पूछो तुम हमसे, हम क्या करते हैं
गमें जिंदगी से घबड़ाकर चला आता हूँ
कुछ गम तुमने दिये,कुछ आसमानी है
उनके दिये जख्म सभी,जब मुस्कुराने लगे
कहते हैं मेरे दोस्त, मेरा सूरते हाल देखकर
दरे-कबूल1 से टकराकर रह गई
आरजू थी कि आज का जाम,हम
ऐ हुजूमे-गम,जरा संभलने दे,इस
अपने इश्क का इम्तिहां चाहता हूँ
उस बेवफ़ा को गले से लगाकर देख लिया
कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो
गमे दुनिया में जीना चाहता कौन है
साकिया उठा दे परदा आज तू रात के राज से
आज रात ठहर जाओ यहीं, सहर1 होने तक
क्या- क्या याद करें हम, उस बे-हयाई की
शबे-वस्ल1 की खुमार अभी बाकी है
गैर की जिक्रे-वफ़ा1 पर जलता दिल
आरजू थी कि आज का जाम ,हम तुम्हारे नाम करें
आओ ! हम एक दूजे से लगकर बैठें
कब मैं तेरा अपना था जो
कर याद अपनी बेवफ़ाई, नींद उड़ जाती है
आबगीना1,तुन्दी-ए-सहबा2 से कभी पिघला नहीं
यार ने कुछ इस अदा से पूछा मेरा मिजाज
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने जाना
उजड़ी पड़ी दिल की बस्ती को ,तुम बसा दो
उसे मुरव्वत1 कैसी, वादा कर , वादे से
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
कोई तो दर्द - मंद1, दिले - नासबूर2 बनकर
क्या कयामत है,सभी हमीं को बुरा
तेरा आँचल पकड़कर कब तक सरकता रहूँ
कभी हुई जो तुमसे मुलाकात
ऐ नूर, तू चिरागे राह है, मुसाफ़िरे मंजिल नहीं
एक बेवफ़ा ,नज़र से दिल में उतर गई
उस बेवफ़ा को हम आज भी याद करते हैं
इधर भी दर्द होता है
आँधी की तरह आना और चला जाना तेरा
आँख खुली तो सपने टूट गये
अपने सभी बेगाने हुये
गमे-दिल किससे कहे, कोई गमख्वार
खुदा जाने,इश्क की तबीयत
माना कि तेरे दीद के काबिल नहीं
इक तू नहीं साथी, सारा गम मेरे साथ है
कैसे उजड़ गई वह दुनिया मेरी
आप जो देख रहे
मेरी जान ! साँस लेने को जीना
चिराग बन ता-उम्र जले
बिजलियाँ टूट पड़ती हैं
बहरे-जहां में जर्र-जर्र होती
हमें तुम्हारी दया नहीं,दुआ
आओ तुमको सुनाता हूँ
ऐ शम्मा1,ज्यों एक-एक रात
हमारे नाम के पते से
मैं मरती हूँ जिस पर
बदल चुका है अहले-दर्द का
किस्मत हम पे रोती है
न पूछो, तुम बिन
आपका दिल मेरे प्यार के काबिल
दूर-दूर रहती हो क्यों
तुम्हारी राह तकते बीत गया जमाना
मैं नहीं रह सकता पड़ा हमेशा तुम्हारे दर
तुम संग बीते लम्हों की कसक मेरे साथ है
तेरी आँखों में मुझको, अपना घर नज़र आता है
ख़ुदा ! मेरे कातिल को सलामत रखना
दुनिया में हम जिंदा हैं कि हमारे संग तेरा नाम रहे
मैँ जो भी हूँ, जैसा भी हूँ , तुम्हारा हूँ
जो तू देख रहा, वह वैसा नहीं है
दुनिया ने तेरी यादों से हमको बेगाना किया
साकिया, उठा परदा,फ़िर तू उसी अंदाज से
न रहीम के , न राम
समन्दे-उम्र1 कहीं नहीं ठहरता
दिल देकर दिल न लेना, किसका कसूर है
हम तो चले उधर, जिधर मेरे रहबर चले
साकी ,यूँ ही नहीं,तुझको तेरा गुमान है
मेरे सीने में दर्द जब पाया राहत
तेरी दुनिया से होकर बेकरार चले
सारे जहां की बेकरारी-ए-दिल तुझी से है
नेकी क्या, मेरी बदी का जिक्र
लोग कहते मुझसे,क्या तेरा
मेरे सीने में दर्द जब
गैर की जिक्रे वफ़ा न करो तो अच्छा है
जिस दिल की जान हो
साकी ! क्या कहा तुमने अपने दीवाने से
नज़र की चाह रूकती है नज़र से
राहें मोहब्बत में गम हजार मिले
हम जिसे जान कहते हैं
देखा तो, हममें अब ताकते
दर्द जो अपना वक्त हमारे साथ गुजारा
हम तुम पर अपनी जान वारे हैं
तेरे संग बैठा, अपना यार देखा
साँझ हुई , वे घर न आये
मेरा रंग–रूप बिगड़ गया
कौन चला रे, यह कौन चला
हम पे जो गुजरी
दर्दे गम की दवा हो जाऊँ
ऐन वक्त पर बात बिगड़ गई
पहले दर्द , फ़िर देते हो दवा
देखिए ! लोग हमें क्या कहते हैं
उसका पावन मन देखा है
नया साल मुबारक
तेरा आज भी इंतजार है
दिल न लगाओ
तुम अपनी कोई कहानी मेरे नाम कर दो
किसको कहें अपना
तुमको जवां रात न कहूँ,तो और क्या कहूँ
बाकी है बोतल में अभी भी शराब
मोहब्बत में अश्क की कीमत कभी कमती नहीं
तुम्हारे नाम से सँवरना
आँखों से यूँ न, बरसात करें
चिराग को बुझा दो,रोशनी की जरूरत क्या है
जमाने को देख जब वह शरमाने लगी
दिल – रुबा ये तो बतला , तुम्हारा ठिकाना कहाँ है
खत उसका जब जलाने लगा
चले हो जब , किस-किस का मिला साथ
दूसरों की बात क्यों, हम स्वयं की बात करें
देखो कहर मौसम ने कैसा ढाया है
बैठे न कभी पास हम ,दूर-दूर ही रहे
मैं काला तो हूँ,आप जितना उतना नहीं
मोहब्बत के जज़्बे फ़ना हो गये
सड़कें खून से लाल हुईं , हुआ कुछ भी नहीं
मुसलमान कहता मैं उसका हूँ
खुदा ढूँढते हो तुम
जिंदगी
हुस्नवालो , कभी मेरी गली भी आया करो
जिंदगी लम्हा -लम्हा घटती चली गई
साया - ए -गुलेशाख की देख, डरता क्यूँ हूँ मैं
मैं अपने हाथों में गुलाब लिये फ़िरता हूँ
माना कि मय जिंदगी के लिए जहर है
उठो , जागो भारत के वीर नौजवान
मेरे प्यार को इन्तिहां चाहिए
तुमको चाहा, यह मेरी भूल है सनम
उस बेवफ़ा को गले से लगाकर देख लिया
दिल का दर्द बाँटने चला हूँ
दुनिया में जीना आसान नहीं है
यह सागर क्यों सूख चला
न तुम मजबूर थी, न मैं मजबूर था
कहते हैं मेरे दोस्त, मेरा सूरते हाल देखकर
उनके दिये जख्म सभी, जब मुस्कुराने लगे
गमे-दिल किससे कहे, कोई
गैर की जिक्रे-वफ़ा पर जलता दिल
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
जिंदगी के सफ़र पे हम साथ चले थे
तस्वीर बदल लेने से तकदीर नहीं बदलती
तस्वीर बदल लेने से तकदीर नहीं बदलती
तुम छोड़ आये जहाँ, वो मेरी मंजिल नहीं है
मोहब्बत में अश्क की कीमत कभी कमती नहीं
अब तारे-जमीं लगते नहीं हँसी, हम क्या करें
अरमां है तुम्हारे दर्दे-गम की दवा हो जाऊँ
बहार से दूर रहे हम
दिल के बुझे दीये को जला दिया
दिल के बुझे दीये को जला दिया
गुलशन को जिसने आबाद किया
इस तरह सीना गमे इश्क में मामूर हुआ
क्या भूलूँ , क्या याद करूँ
ए दिल पोछ ले अश्क अपना
यह तो हुस्न की आदत है
किस्मत में डूबना ही लिखा है तो
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
दिल को आजमाना छोड़ दे तू
उस बेवफ़ा से वफ़ा की बात न कर
उस बेवफ़ा से वफ़ा की बात न कर
अपने इश्क का इम्तिहां चाहता हूँ
खुदा जाने,इश्क की तबीयत जीस्त
आबगीना1,तुन्दी-ए-सहबा2 से कभी पिघला
अपने इश्क का इम्तिहां चाहता हूँ
दिल को आजमाना छोड़ दे तू
उस बेवफ़ा को गले से लगाकर देख लिया
हद से गुजरने को जी चाहता है
हद से गुजरने को जी चाहता है
कदम राहें मंजिल की पाते नहीं
कैसे कह दूँ , मुझको उससे प्यार नहीं है
क्या –क्या न सहे हमने,सनम तेरे प्यार में
क्या –क्या न सहे हमने,सनम तेरे प्यार में
न पाकर तुझे, बड़बड़ाकर चला जाता हूँ
जब ताजा ज़ख्म सिलाने निकले
जिंदगी का यह कौन सा मोड़ है
जो बैठो तो, लिपटकर बैठो
कदम राहें मंजिल की पाते नहीं
डरता हूँ हाले दिल सुनाने से
कभी घर से बाहर निकल कर तो देखो
सनम तेरे प्यार में
खुशबुएं जब बेवक्त आने लगे
कर बहाने कभी तो आया करो
कोई हमें बुरा कहता है तो कहने दो
क्या कहती यह पायल समझ आता नहीं
गर न होती तेरी दया मुझ पर
उठो , जागो भारत के वीर नौजवान
आप को हमारी याद आयेगी
कहकर मुकर जाये,तो अच्छा है
नहीं कोई बात, मुझ दिल - बीमार से
जिंदगी, नसीब के साथ चलना है तुझे
आप जब से मेरे सपने में आने लगे हैं
आसमां को छू लूँ, मेरा यह अरमान नहीं है
जीवन नद का मिलता कोई कहाँ किनारा
एक बार जो गिरा, गिरता चला गया
ऐ मेरी गुल, गुलोबहार
कब खामोश कर दे दिल को ये
नाच रही तवायफ़ है,या मजबूरी है
कहना है , तो वो बात करो
एक दूजे के दिल की गहराइयाँ
कोई हमें बुरा कहता है तो कहने दो
क्यों तुमने मुझसे बेवजह तकरार किया
जब वह होगा, तो कैसा होगा
जलते हैं शोले अंगारों के साथ
जिंदगी का हर दावँ, हम हार बैठे हैं
अब इस नासमझ को समझाये कौन
आओ कुछ नव निर्माण करें
आज देश की हालात ऐसी है, कुछ मत पूछो
आज आदमी, से आदमी परेशान है
आप जब से मेरे सपने में आने लगे हैं
कोई हमें बुरा कहता है तो कहने दो
जिंदगी का हर दावँ, हम हार बैठे हैं
जिंदगी तुमको दूर से ही हम पहचानते हैं
जिंदगी लम्हा -लम्हा घटती चली गई
जैसे गुजरा वह, हम भी गुजर जायेंगे
जैसे गुजरा वह, हम भी
टके सेर बेच रहा ईमान है
ढूँढ़ता था मैं जिसे बाज़ार में
तुम बिन जीना चाहा, जी भी न सका
दिल प्यार में पागल है, बताऊँ कैसे
देखो कहर मौसम ने कैसा ढाया है
प्यार हम भी कभी किया करते थे
फ़िर से आयेगी वह सुबह देखना
फ़ूल को शूल कहना,उसकी कोई तो लाचारी है
मंजिल मिलेगी,दो कदम चलकर तो देख
मज़हब , भाषा की बात न कर
माना कि तुमको, मुझसे प्यार नहीं है
मंजिल मिलेगी,दो कदम चलकर तो देख
मेरा रंग – रूप बिगड़ गया
मेरे दिल में रहो, मेरा अरमान बनकर
यह जो पेड़ सर उठाये यहाँ खड़ा है
यह जुबां चुप रह नहीं सकती
वक्त में होती बड़ी जोर
वक्त- वक्त की बात है
वे सपने में भी शरमाते रहे
वो आये हमारे घर, आकर चले गये
फ़िर से आयेगी वह सुबह देखना
साँझ हुई , वे घर न आये
साया - ए -गुलेशाख की देख, डरता क्यूँ हूँ मैं
सुख के दिन गुजारे हैं,दुख के भी गुजर जायेंगे
सुबह से शाम , शाम से रात हुई
हम पे जो गुजरी , हम जानते हैं
साँझ हुई , वे घर न आये
हम प्यार करना, कराना भूल गये
हमने मर-मर कर जीना सीख लिया
हर तरफ़ चल रही नफ़रतों की आँधियाँ देखा
अच्छे दिन गुजारे हैं, बुरे भी गुजर जायेंगे
इस कदर भी मुँह मोड़कर, कोई जाता नहीं
कसाइयों की बस्ती में, दया की बात मत करना
कह दो बहुत उड़ चुके वे आसमान पर
किस राह चलना है,चलने से है क्या डरना
किसके गले लगें हम,कोई अपना नजर नहीं आता
किसके गले लगें हम,कोई अपना नजर नहीं आता
अपना यहाँ लगता कौन है
कौन चला रे, यह कौन चला
मेरा रंग – रूप बिगड़ गया
खत उसका जब जलाने लगा
खत उसका जब जलाने लगा
खून से सड़कें लाल हैं
किस-किस का मिला साथ
रोशनी की जरूरत क्या है
किस-किस का मिला साथ , मत देखो
रोशनी की जरूरत क्या है
जब दुख का बादल छाता है
जमाने को देख जब वह शरमाने लगी
जिंदगी भर का नशा, उसकी आँखों के
जिंदगी हँसने - हँसाने के लिए है
जीते जी रिश्ता तुमसे तोड़ा न गया
जुवां पर लिखकर नाम तुम्हारा सोता हूँ
तुमको अपने दिल में हम बिठा नहीं सकते
तुमको जवां रात न कहूँ,तो और क्या कहूँ
तुम्हारा प्यार दिल से निकाला न गया
तुम्हारा प्यार दिल से निकाला न गया
तुम्हारी नजरों के तीर से वह खंजर टूटा
तुम्हारी नजरों के तीर से वह खंजर टूटा
तुम्हारी हर बात का एतवार किया मैंने
तुम्हारे नाम से सँवरना,अच्छा लगता है
तुम्हारे प्यार में सब कुछ लुटा दिया
तुम्हारे हर जुल्म को सहा है मैंने
तेरा प्यार सच्चा है तो, डरता क्यों है
तेरा प्यार सच्चा है तो, डरता क्यों है
दर्द में डूबा सारा संसार है
दर्द में डूबा सारा संसार है
दिल में रहकर दिल से खेलना नहीं अच्छा
दिल से दिल मिलाये रखना
दिल – रुबा ये तो बतला, तुम्हारा ठिकाना कहाँ है
दिल – रुबा ये तो बतला, तुम्हारा ठिकाना कहाँ है
दिल – रुबा ये तो बतला, तुम्हारा ठिकाना कहाँ है
दुनिया एक सरायखाना है
दुनिया जिसे नसीब कहती है
दुनिया जिसे नींद कहती है
दूसरों की बात क्यों, हम अपनी बात करें
देखते- देखते इन्सान बदल जाता है
देखो कहर मौसम ने कैसा ढाया है
न चिंता अच्छी, न मलाल अच्छा
पास है ही क्या , जो चुरा ले जायेगा
बहुत रहे हम दूर –दूर, और हमें दूर नहीं रहना है
बाकी है बोतल में अभी भी शराब,महताब मत देखो
बैठे न कभी पास हम ,दूर-दूर ही रहे
मुसलमान कहता मैं उसका हूँ
मेरा बेटा अब बड़ा हो गया है
मैं तुम्हारी नहीं, अपनी बात करता हूँ
मैं काला तो हूँ,आप जितना उतना नहीं
मैं थी , संग तुम्हारी यादों का कारवां था
मैं सोचती हूँ, सनम तुम भी सोचो
मुहब्बत के जज़्बे फ़ना हो गये
मोहब्बत में अश्क की कीमत कभी कमती नहीं
मौत – मौत हम पुकारते रहे, मौत आने तक
यह जग एक सपना है
रात तुम्हारी, दिन तुम्हारा, जवानी तुम्हारी
वो आये , आकर चले गये
शहर में आकर, अपना गाँव भूल गये
शहर में आकर, अपना गाँव भूल गये
सड़कें खून से लाल हुईं , हुआ कुछ भी नहीं
सुबह, शाम,दोपहर, दिन-रात हो
हम जो जानते ,तो कभी नैन न लगाते
हम तुम्हारे प्यार में, दर– बदर गये
होती रात लम्बी गम की
तुझको अपना वतन याद नहीं
यह पैगाम तो एक बहाना है
तुमको मुझसे प्यार है, यह हकीकत नहीं
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है
माँ ही मेरा खुदा है
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
इस तरह सीना गमे इश्क में मामूर1 हुआ
उसे मुरव्वत1 कैसी, वादा कर , वादे से
किस्मत में डूबना ही लिखा है तो
ए दिल पोछ ले अश्क अपना
कर याद अपनी बेवफ़ाई
तुम्हारे दामन का सहारा न मिला
तुम्हारे दामन का सहारा न मिला
किसने मेरे दिल के बुझे दीये को जला दिया
किस्मत में डूबना ही लिखा है तो
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
बहार से दूर रहे हम
चाहा था इस रंगे- जहां में अपना एक
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
तू जो न मिली, तो हम मर जायेंगे
तस्वीर बदल लेने से तकदीर नहीं बदलती
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
अब तारे-जमीं लगते नहीं हँसी
तुम बुरा मान गये
हम नहीं करना चाहते याद
हम तो निकले थे, कहीं और
हम जख्में तमन्ना धो आये हैं
हम दोनों मिल के
साथ न साकी है, न सहारा
साकी, रकीब ढूँढ़ता है
साकी ! सलामत रहे तू
साकिया उठा दे परदा आज तू
शामे—सफ़र है, संग न अपना
शामे—जिंदगी में गम दौड़कर आया है
शामे –जिंदगी1 में और क्या काम है बाकी
शामे – जिंदगी1 में तुम्हारे सिवा, मेरे
ले जाओ मेरे सीने से दिल निकाल के
रूह कालिब में दो दिन का मेहमान है
रुख बदलकर मौजें तुफ़ां हो गईं
मैं तो सो रहा था, दर्द ने आकर
मैं तेरा यार हूँ, प्यार हूँ,
मेरे गम का फ़साना1 सुननेवाले
मेरे ख़ुदा , मेरे कातिल की दुआ कबूल करना
मेरे दिल में वो कतर है,जो
मेरा घर, तेरे घर से दूर तो था
माना कि तेरे दीद के नहीं काबिल, हूँ मैं
महफ़िले-हयात में कभी रौनक भी थी
राह वही, राही बदल गये
बहरे – जहां में, कश्ति – ए - उम्र , ठहर
नजर मिलते ही जान और ईमान लिया
दुनिया मेरी बदल गई
दिल में दिल बनकर रहता हूँ
तेरे दिये जख्मों के सहारे जी लूँगा
तू जो न मिली, तो हम मर जायेंगे
तुम्हारी यादों के जख्म जब भरने लगते हैं
तुमको शर्म आती नहीं, आशिक से शर्माते हुए
तुमको देखें कि तुमसे हम बात करें
तुमको तुम्हारा ख़ुदा याद नहीं
तुम जिसे बरबाद करो, वह कैसे
वो मेरी मंजिल नहीं है
तुम क्या खफ़ा हुए, जमाना खफ़ा
तुम बिन जाऊँ तो कहाँ जाऊँ
तस्वीर बदल लेने से तकदीर
तकल्लुफ़ शराफ़त का निशां है
जो सुनना चाहते हो, दास्तां हमारी
हमारे दिल की लगी को जो बुझा देते
मेरे दिल की लगी को जो बुझा देते
जिंदगी के सफ़र पे हम साथ चले थे
जाने वाले मिट जाते हैं, फ़ना नहीं होते
जान की तरह सीने से लगाये रखती
जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
चिरागे - राह तो है , दीखता मंजिल नहीं
चाहो तो बना दो, न चाहो तो मिटा दो
अब तारे-जमीं लगते नहीं हँसी, हम क्या करें
गैर से रात क्या बनी
गैर की जिक्रे-वफ़ा पर जलता दिल
गमे-दिल किससे कहे, कोई गमख्वार नहीं मिलता
खुदा तेरी बागे-जहाँ में बहती
जिस दिल में रहता था
खुद के तो हो न सके
क्या कयामत है, सभी हमीं को
कैसे कहूँ दिले हाल अपना
कैसे उजड़ गई वह दुनिया मेरी
तू ख़ुदा को याद कर
तू ख़ुदा को याद कर
कब मैं तेरा अपना था जो
जरा संभलने दे, इस बीमार को
उनके दिये जख्म सभी, जब मुस्कुराने लगे
गम सारा मेरे साथ है
जाम , हम तुम्हारे नाम करें
आज का जाम , हम तुम्हारे नाम करें
आबगीना,तुन्दी-ए-सहबा से कभी पिघला नहीं
आप जो देख रहे , वही हम देखते हैं
आगे आता था इश्के- बेकसी पे रोना
आओ ! हम एक दूजे से लगकर बैठें
अब आता नहीं मजा, अफ़साना -ए- गम
अक्सर हमारे ही साथ ऐसा होता क्यों है
भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो
दिले बेताब को जुल्फ़ों में उलझाया न करो
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
खुदा करे,मेरी कसम का उसे एतवार हो
कोई किसी का हाले दिल मुड़कर पूछता नहीं
कर याद अपने बर्बादे मुहब्बत,हम बहुत रोये मगर
चोरी-डकैती,खून-खराबा अपना मान हुआ
चिराग बन ता-उम्र जले,जिसके इंतजार में हम
गुजरने के ये दिन गुजर जायेंगे
आपका दिल मेरे प्यार के काबिल नहीं है
क्या पता कब कयामत मेरे नाम आ जाये
कोई रातों को देकर आवाज, मुझको बुलाता है
चोरी-डकैती ,खून-खराबा अपना मान हुआ
जीवन के सफ़र पे,हम अकेले थे चले
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
गहराई दिले यार की थाह न सका, यही हैरानी है
हम क्या करें
उसकी हिफाजत, दुपट्टा जब से करने लगा
लगी है चोट दिल पर, बता नहीं सकते
छिछली नदिया गरज रही समंदर की तरह
सुबह से शाम हुई, शाम से रात हुई
साँझ हुई , वे घर न आये
तुम्हें कौन सा जख्म दिखाऊँ
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब को क्यों ले आई
तुम्हारे गालों पे तिल पहले भी था
वो सुकूने जिंदगी कहाँ से लाऊँ
हो जिसकी मुहब्बत, फ़कत मस्ती-ए किरदार
यार ने कुछ इस अदा से पूछा मेरा मिजाज
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब को क्यों ले आई
है भूल मेरी, जो तेरे वादे पे एतवार किया
हो जिसकी मुहब्बत, फ़कत मस्ती-ए किरदार
मुझे उसी से मुहब्बत हो गई
तबाह दिल का हाल न पूछो
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
इस उजड़े गुलशन को जिसने आबाद किया था
वहाँ फूल कम,काँटे अधिक थे
तुम्हारे गालों पे तिल पहले भी था
दिले बेताब को जुल्फ़ों में उलझाया न करो
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब को क्यों ले आई
चाहा था इस रंगे- जहां में अपना एक
कब पूरी होगी अब तमन्ना मेरी
जुल्फ़ों में उलझाया न करो
जिसके जल्वे से जमीं –आसमां सर-शार है
नहीं, तो मेरा क्या कसूर है
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
यह तो हुस्न की आदत है
किस्मत में डूबना ही लिखा है ,तो
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
मुहब्बत फिर न रुसवा सरे बाजार हो
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
चाहा था इस रंगे- जहां में अपना एक ऐसा घर हो
ख्वाबों के जलते दीये तो महफिल में हो
गुनाहे-इश्क की सजा, मिली तो क्या मिली
शामे-जिंदगी मुझे उसी से मुहब्बत हो गई
बस सौ साल की उमर माँगी है
किस्मत में डूबना ही लिखा है, तो
रात ठहरना कबूल नहीं, तो मेरा क्या कसूर है
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
वादे से मुकड़ जाना , यह तो हुस्न की आदत है
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
गुनाहे-इश्क की सजा, मिली तो क्या मिली
मगर तब इतना कातिल न था
दरे-कबूल से टकराकर रह गई , दुआ मेरी
रात ठहरना कबूल नहीं, तो मेरा क्या कसूर है
किसने मेरे दिल के बुझे दीये को जला दिया
जिस इनाम के काबिल हूँ मैं
आईने के तस्वीर से तुम्हारी तस्वीर नहीं मिलती
रात भर जागे हैं , नींद आती नहीं
अक्सर हमारे ही साथ ऐसा होता क्यों है
अब आता नहीं मजा, अफ़साना -ए- गम सुनाने में
हम पे जो गुजरी
तुमको जवां रात न कहूँ
मैं तेरा यार हूँ ,प्यार हूँ
इस तरह सीना गमे इश्क में मामूर हुआ
खुदा जाने,इश्क की तबीयत जीस्त का मजा
कबूल नहीं,हम क्या करें
आज रात ठहर जाओ यहीं, सहर होने तक
आदमी तो वह अच्छा है, पर बदनाम बहुत है
आपका दिल मेरे प्यार के काबिल नहीं है
आपको मेरे दिल की क्या खबर
इस उजड़े गुलशन को जिसने आबाद किया था
ए दिल पोछ ले अश्क अपना
इस तरह सीना गमे इश्क में मामूर हुआ
इसी जन्नत में , जहन्नुम गुमां होता है
कभी गले से लगाकर तो देखो
कर याद अपने बर्बादे मुहब्बत
किसने मेरे दिल के बुझे दीये को जला दिया
किस्मत हम पे रोती है, हम किस्मत पर रोते हैं
कैसे कहूँ दिले हाल अपना, बेरुखी पे तुली
इस उजड़े गुलशन को जिसने आबाद किया था
ऐन वक्त पर बात बिगड़ गई
ऐ हुस्न खुदा, अगर खुदा है
क्या- क्या याद करें हम, उस बे-हयाई की
कैसे कहूँ दिले हाल अपना, बेरुखी पे तुली
कोई किसी का हाले दिल मुड़कर पूछता नहीं
गहराई दिले यार की थाह न सका
गुजरने के ये दिन गुजर जायेंगे
आ जा कि तेरा आज भी इंतजार है
उसे जो न करना था, सो कर गया
किस्मत हम पे रोती है
कुछ गम तुमने दिये,कुछ आसमानी है
कोई रातों को देकर आवाज, मुझको बुलाता है
क्या पता कब कयामत मेरे नाम आ जाये
कौन सुनेगा, दर्दे गम की कहानी मेरी
चोरी-डकैती ,खून-खराबा अपना मान हुआ
अब तारे-जमीं लगते नहीं हँसी
गहराई दिले यार की थाह न सका
आओ तुमको सुनाता हूँ, आज एक कहानी
कोई रातों को देकर आवाज, मुझको बुलाता है
जिसके इंतजार में हम
जीवन के सफ़र पे, हम अकेले थे चले
जो तू देख रहा, वह वैसा नहीं है
जो पूछो तुम हमसे, हम क्या करते हैं
तुम पे मरता हूँ इतना भी नहीं
ता उम्र कुछ ऐसे हालात साथ रहे मेरे
तुमको जवां रात न कहूँ , तो और क्या कहूँ
मेरा रंग–रूप बिगड़ गया
तेरा गुरूर तुझे कहाँ ले आया
तेरी जुल्फ़ों के साये में, पसीना आ गया
तुमको चाहिये था बहाना,हमको सताने के लिये
तुम्हारी राह तकते बीत गया जमाना
ए दिल पोछ ले अश्क अपना, कैसी-कैसी सूरतें उठ गईं
है ऐ शम्मा,ज्यों एक-एक रात तुझ पर गुजारी
ऐ हुस्न ! ख़ुदा के लिये अपने
कभी हम मिले,तो तुम न मिले
जिंदगी की शाम ढ़लने लगी
अरमां है तुम्हारे दर्दे गम की दवा हो जाऊँ
ऐ हुस्न ! ख़ुदा के लिये अपने
तेरा गुरूर तुझे कहाँ ले आया
दयारे गम में दिल मेरा छूट गया
दिल लेकर न करो इनकार
ऐ हुस्न ! ख़ुदा के लिये अपने
उसे जो न करना था, सो कर गया
चोरी-डकैती ,खून-खराबा
जिंदगी की शाम ढ़लने लगी
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
आदमी तो वह अच्छा है
जो तुम न होती
ता उम्र कुछ ऐसे हालात साथ रहे मेरे
ऐन वक्त पर बात बिगड़ गई
हम अकेले थे चले
जो पूछो तुम हमसे, हम क्या करते हैं
तुम बिन जीकर देख लिया
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
जिक्र मेरा मुझसे बेहतर है
चाहा था इस रंगे- जहां में अपना एक ऐसा घर हो
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
तुमको क्या गरज, कि उस बेअदब को
जो तुमको अपने दिले– दुश्मन की महफ़िल में
कर याद अपने बर्बादे मुहब्बत
ए दिल पोछ ले अश्क अपना
इस तरह सीना गमे इश्क में मामूर1 हुआ
इस उजड़े गुलशन को जिसने आबाद किया था
अब तारे-जमीं लगते नहीं हँसी
कहते हैं मेरे दोस्त, मेरा
कैसे उजड़ गई वह दुनिया मेरी
क्या कयामत है, सभी हमीं को
खुद के तो हो न सके, मेरा क्या
खुदा जाने,इश्क की तबीयत जीस्त का मजा
खुदा तेरी बागे-जहाँ में बहती यह कैसी हवा है
कब मैं तेरा अपना था जो
कैसे उजड़ गई वह दुनिया मेरी
चाहो तो बना दो
गैर से रात क्या बनी
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो
तुमको तुम्हारा ख़ुदा याद नहीं
तुमको देखें कि तुमसे हम बात करें
कहते हैं मेरे दोस्त, मेरा सूरते हाल देखकर
क्या कयामत है, सभी हमीं को बुरा कहते हैं
अक्सर हमारे ही साथ ऐसा होता क्यों है
आओ ! हम एक दूजे से लगकर बैठें
अब आता नहीं मजा
आगे आता था इश्के- बेकसी पे रोना
आगे आता था इश्के- बेकसी पे रोना
आरजूथी कि आज का जाम
उजड़ी पड़ी दिल की बस्ती को ,तुम बसा दो
कैसे कहूँ दिले हाल अपना
सभी हमीं को बुरा कहते हैं
तुमको क्या गरज, कि उस बेअदब को
तुम्हारे गालों पे तिल पहले भी था
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
कहते हैं मेरे दोस्त, मेरा सूरते हाल देखकर
कैसे उजड़ गई वह दुनिया मेरी, जिसे मैंने
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
खुदा जाने,इश्क की तबीयत जीस्त1 का मजा
खुदा तेरी बागे-जहाँ1 में बहती यह कैसी हवा है
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
इस उजड़े गुलशन को जिसने आबाद किया था
बहरे-जहां में जर्र-जर्र होती जा रही
भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो
वो सुकूने जिंदगी कहाँ से लाऊँ
हम जिन्हें अपना देवता मानकर पूजते रहे
आपको मेरे दिल की क्या खबर
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
इस तरह सीना गमे इश्क में मामूर हुआ
उसे मुरव्वत कैसी, वादा कर , वादे से
ए दिल पोछ ले अश्क अपना
कर याद अपने बर्बादे मुहब्बत
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
मेरी तरह उसकी भी नींद उड़ जाती तो अच्छा
मेरी उम्मीदों की शाख पर, अपनी चाहत का
मस्ती – ए - शराब, ख्वाब में जिस सूरत से
मुझे तुम्हारी खबर नहीं, मगर इतनी तो खबर है
भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो
बहरे-जहां में जर्र-जर्र होती जा रही, हमारी
बदल चुका है अहले- दर्द का दस्तूर
नजर मिलते ही तुमसे,हमारे ईमान गये
दिले बेताब को जुल्फ़ों में उलझाया न करो
दरे-कबूल से टकराकर रह गई , दुआ मेरी
दुनिया ने तेरी यादों से हमको बेगाना किया
दिले बेताब को जुल्फ़ों में उलझाया न करो
तुम बिन जीकर देख लिया, अब मरकर देखेंगे
तुम पे मरता हूँ इतना भी नहीं
जो तुमको अपने दिले– दुश्मन की महफ़िल में
जिसके जल्वे से जमीं –आसमां सर-शार है, हमने
जिसके जल्वे से जमीं –आसमां सर-शार1 है, हमने
तेरा आँचल पकड़कर कब तक सरकता रहूँ मैं
तेरा आँचल पकड़कर कब तक सरकता रहूँ मैं
तुम्हारे गालों पे तिल पहले भी था
जिस निगाह से बचने में मेरी उम्र गुजरी
जिक्र मेरा मुझसे बेहतर है
चाहा था इस रंगे- जहां में अपना एक ऐसा घर हो
चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
गम की अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब को क्यों ले आई
किस्मत में डूबना ही लिखा है, तो
किसने मेरे दिल के बुझे दीये को जला दिया
कर याद अपने बर्बादे मुहब्बत
कर याद अपनी बेवफ़ाई
ए दिल पोछ ले अश्क अपना
उसे मुरव्वत1 कैसी, वादा कर , वादे से
इस तरह सीना गमे इश्क में मामूर1 हुआ
इस उजड़े गुलशन को जिसने आबाद किया था
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
आपको मेरे दिल की क्या खबर
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
हम पे जो गुजरी, हम जानते हैं
मंजिल मिलेगी, दो कदम चलकर तो देख
धुआँ-धुआँ दीखता आपको गुम्बदे – मीना
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो
चोरी- डकैती, खून-खराबा
हर शाम बैठकी, बिठाई जाती है
धुआँ-धुआँ दीखता आपको गुम्बदे – मीना
जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना
आपको मेरे दिल की क्या खबर
इश्क के फ़ंदे से छूटकर हमने
इस उजड़े गुलशन को जिसने आबाद किया था
इस तरह सीना गमे इश्क में मामूर हुआ
उसे मुरव्वत कैसी, वादा कर , वादे से
कर याद अपनी बेवफ़ाई
कर याद अपने बर्बादे मुहब्बत
किसने मेरे दिल के बुझे दीये को जला दिया
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब को क्यों ले आई
चमन में रहकर भी, बहार से
गमकी अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
कैसे कहूँ किस्मत,शबाब को क्यों ले आई
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
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