Dr. Srimati Tara Singh
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कहानी
डॉ. श्रीमती तारा सिंह
डॉ. श्रीमती तारा सिंह
45
घासवाली
ज्योति
दरका दर्पण
प्रेत--यात्रा मार्ग
बंदिनी
मृग मरीचिका
राजनीति का आधार धन
शरणार्थी
सुख का सौदागर
पोंगा पंडित
आज सप्तमी है
लक्ष्मण रेखा
रिसते जख्म
रिश्ते तूत के
आश्रिता
अतिथि सेवा
बेरहम वक्त
आखिरी मुलाकात
काला आँचल
हवन कुंड
हिंदी और हिंदी कहानी का विकास
भैया का आँगन
भाग्य
बुढ़िया का लोटा
फ़कीरा
दीपावली
निशा
मासी
छाता
काकी
कलियुगी राम
करमजला
असल गया, सूद गया
अमिट स्मृति
क्षमा बड़ेन को चाहिए
मुझे दुआ चाहिये
पति –परमेश्वर
यह कैसी श्रद्धांजलि , यह कैसा प्यार
तकदीर का लिखा और नेति का बदा कभी नहीं मिटता
परम्परा
बैलगाड़ी का पहिया
पानी ने बेपानी किया
संतोष धन
दद्दू का ठेलागाड़ी
सुखनी
भगवान अमीरों का ही क्यों
बेटी
स्वर्ग -सुख
स्मृति लौट आई है
क्या यह वही शाम है ?
माँ
लांछन
शरणार्थी
भुतना का तोता
बागवां की बेरूखी
आश्रिता
पिताश्री और आलम
माँ का दूध सस्ता क्यों
यह कैसी मातृभक्ति
फ़कीरा
उधार की जिंदगी
निशा
भाग्य विडंबना
रिसते जख्म
सौ में से एक गया, बचा शून्य
मनोवृत्ति
रिश्ते तूत के
कलियुगी राम
भाग्य
मुझे दुआ चाहिये
मासी
खून के रिश्ते
संतान सुख
सुगनी का गौना
आश्रिता
कुर्बानी का पुरस्कार
तुम्हारी शिक्षा धर्मविहीन है
भूतों का भूख हड़ताल
मर्णोत्सव
आखिरी मुलाकात
चाँदी की बिछिया
शक की बुनियाद पर भीत
घर से श्मशान तक
प्रेमाश्रय
मुझे अपनी गरीबी पर गर्व है
उसने पीया है ज़हर
कोरोना आई है ,ममता के संग
कलियुगी राम
मुझे दुआ चाहिये
लक्ष्मण रेखा
स्मृतिशेष
लाल चुनरी
स्वर्ग -सुख
छोटी बहू
आत्मदुर्ग पर, कड़े पहरे थे
महँगी जवान हो गई
वक्त किसी का अपना नहीं होता
और दर्पण टूट गया
उधार का दूध
यह नदी प्यासी है
इस कलि को सावन ने मुरझाया है
फूल बने अँगारे
छोटी बहू
दोस्ती और दायरा
चला तो बहुत , पहुँचा कहीं नहीं
श्वेत फूल की माला
धन्ना सेठ
सच्ची श्रद्धांजलि
राजनीति का आधार धन
और दर्पण टूट गया
विधि के हाथ कुछ नहीं
सुचरिता
ईश्वर ! मेरी रक्षा करना
दादा , आपने भगवान को देखा है
अपना भी ऋण चुका दो
वक्त किसी का अपना नहीं होता
गंगाजलि
दादी का स्वर्ग
कुर्बानी का पुरस्कार
माँ का दूध सस्ता क्यों ?
गरीबी की रात अधिक लम्बी होती है
पति –परमेश्वर
फ़कीरा
“दीपावली”
लक्ष्मण रेखा
ससुराल
उधार की जिंदगी
कलियुगी राम
ससुराल
हत्यारा पिता
छाता
स्मृतिशेष
राखी
चरण-चिन्ह
पति –परमेश्वर
बुढ़िया का लोटा
माटी का बिरुवा
मैं हिन्दू हूँ
मैं रोई, तो जग हँसा
मुरझते फ़ूल
निशा
भाग्य
मासी
काकी
अतिथि सेवा
आखिरी मुलाकात
उधार की जिंदगी
“दीपाबली”
भूतहा – पीपल
कल्पना, मेरी जिंदगी
कफ़न की तलाश
करमजला
अच्छा आचार- व्यवहार करना
कुर्बानी का पुरस्कार
क्या यह वही शाम है ?
छोटी बहू
जहाँ चाह , वहीं राह
चंदू के दाँत का दर्द
खून के रिश्ते
पोंगा पंडित
बेरहम वक्त
पुत्रमोह
तुम बिन जग सूना
कुर्बानी का पुरस्कार
आश्रिता
कफ़न की तलाश
चरण-चिन्ह
कल्पना, मेरी जिंदगी
कलियुगी राम
आखिरी मुलाकात
काकी
पुत्रमोह
अतिथि सेवा
ज्योति
ससुराल
उधार की जिंदगी
कलियुगी राम
काकी
मर्णोत्सव
बेरहम वक्त
रामधारी चाचा
मधुवा की माँ
फूल बने अँगारे
दोस्ती और दायरा
सुगनी का गौना
बेरहम वक्त
लाल चुनरी
भैया का आँगन
स्मृति लौट आई है
मृग मरीचिका
लांछन
शरणार्थी
फ़तेह सिंह
अमिट स्मृति
अतिथि सेवा
ज्योति
यह कैसी मातृभक्ति
पानी ने बेपानी किया
बेरहम वक्त
पोंगा पंडित
'प्रेमाश्रय’
शक की बुनियाद पर भीत
ज्योति
प्रायश्चित
प्रेत-यात्रा मार्ग
बंदिनी
बागवां की बेरूखी
बिरजुवा के माता-पिता
भुतना का तोता
माँ
यादें
राजनीति का आधार धन
पुत्रमोह
पोंगा पंडित
दोष तो हमारे भाग्य का है
घर से श्मशान तक
दोष तो हमारे भाग्य का है
माँ का दूध सस्ता क्यों ?
उसने पीया है ज़हर
गरीबी की रात अधिक लम्बी होती है
गरीबी की रात अधिक लम्बी होती है
वह सपना बड़ा भयानक था
घर से श्मशान तक
आत्मदुर्ग पर, बड़े कड़े पहरे थे
श्वेत फूल की माला
चाँदी की बिछिया
फ़तेह सिंह
ज्योति
प्रायश्चित
बंदिनी
बागवां की बेरूखी
बिरजुवा के माता-पिता
भुतना का तोता
मृग मरीचिका
मृग मरीचिका
लांछन
सच्ची श्रद्धांजलि
कुर्बानी का पुरस्कार
बेरहम वक्त
दोष तो हमारे भाग्य का है
आत्मदुर्ग पर, बड़े कड़े पहरे थे
रिश्ते तूत के
रिसते जख्म
शराफत जिंदा है
विधि के हाथ कुछ नहीं
समय की कदर, अपनी कदर
वहाँ फूल कम, काँटे अधिक थे
रिश्ते तूत के
रिसते जख्म
गरीबी की रात अधिक लम्बी होती है
वह सपना बड़ा भयानक था
बागवां की बेरूखी
प्रायश्चित
पति –परमेश्वर
मैं रोई, तो जग हँसा
बागवां की बेरूखी
भैया का आँगन
घर से श्मशान तक
आत्मदुर्ग पर, बड़े कड़े पहरे थे
फूल बने अँगारे
महँगी जवान हो गई
और दर्पण टूट गया
सुचरिता
दोस्ती और दायरा
वक्त किसी का अपना नहीं होता
आत्मदुर्ग पर, बड़े कड़े पहरे थे
और दर्पण टूट गया
मासी
मुझे दुआ चाहिये
श्वेत फूल की माला
शक की बुनियाद पर भीत
पोंगा पंडित
बेरहम वक्त
धन्ना सेठ
फूल बने अँगारे
विधि के हाथ कुछ नहीं
‘शराफत’ जिंदा है'
आत्मदुर्ग पर, बड़े कड़े पहरे थे
सुचरिता
पति –परमेश्वर
भाग्य
बागवां की बेरूखी
बिरजुवा के माता-पिता
प्रायश्चित
लांछन
लाल चुनरी
ज्योति
क्या यह वही शाम है?
बंदिनी
प्रेत-यात्रा मार्ग
चाँदी की बिछिया
पिताश्री और आलम
और दर्पण टूट गया
पानी ने बेपानी किया
आत्मदुर्ग पर, बड़े कड़े पहरे थे
आत्मदुर्ग पर, बड़े कड़े पहरे थे
उसने पीया है ज़हर
कोरोना आई है, ममता के संग
करमजला
काला आँचल
छोटी बहू
छाता
फ़तेह सिंह
मर्णोत्सव
अपना भी ऋण चुका दो
इस कलि को सावन ने मुरझाया है
पुत्रमोह
‘प्रेमाश्रय’
चरण-चिन्ह
शरणार्थी
दूध का कर्ज
सुख का सौदागर
बंदिनी
प्रायश्चित
उधार की जिंदगी
असल गया, सूद गया
अमिट स्मृति
कलियुगी राम
माँ का दूध सस्ता क्यों?
मुझे अपनी गरीबी पर गर्व है
पुत्रमोह
भाग्य विडंबना
चाँदी की बिछिया
श्वेत फूल की माला
आत्मदुर्ग पर, बड़े कड़े पहरे थे
और दर्पण टूट गया
गरीबी की रात अधिक लम्बी होती है
घर से श्मशान तक
दोष तो हमारे भाग्य का है
दद्दू का ठेलागाड़ी
पानी ने बेपानी किया
कुर्बानी का पुरस्कार
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
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