Dr. Srimati Tara Singh
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कविता
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कविता
सुशील कुमार शर्मा
सुशील कुमार शर्मा
फुरसत नही मुझे
रूह के रिश्ते
मैं और मेरी धरती
दोहे बन गए दीप -12
दोहा बन गए दीप -11
मन की पाँखें
पीत अमलतास
कैद में धूप
एक चीत्कार
शब्द चाहिए
शब्द मौन हैं
जय भारती
मधुमास
भारत पुत्र
परमार्थ में सदा शांति है
शुद्ध विचारधारा धारित कर
रक्त अब बहता नही है
कविता क्या है
राम लखन की शोभा न्यारी ,हर्षित घूमते
सपनों की दुनिया में चाहत ,तेरे संग
दोहे बन गए दीप
त्वं शरणं मम
भगवान या शैतान
धड़कन
मैं ही मैं हूँ
अंतरजाल पर हिंदी साहित्य
अंतरजाल पर हिंदी साहित्य
प्रकृति का सानिध्य
कैसे हो गजानन
काश में तुम्हे पढ़ पाता
गणपति आराधना
क्या वो किसान थे
चोका
सौंदर्य
बूंद की मानिंद
प्रणाम विषधरों
राष्ट्र हित में
तेरी चाहत
सियासत
टन टन बज गई घंटी
चुनावी हथकंडे
इंसानियत
सद्गुण और संस्कार
एक पेट की और खेत की कविता
कुछ तो है
कुछ तो है
कुछ तो है
ईद मुबारक
इंतजार करती माँ
बहारें फिर भी आएँगी
मेरा देश मेरी पहचान
सेदोका
माहिया
परिवर्तन
माँ -3
मेरी भूमिका
रमे रामे मनोरमे
हनुमत प्रार्थना
जीता रहूँगा
तुम ऊपर उठने लगे हो
स्वाभिमान
मैं तुम्हारी उर्मिला
भारत की पहचान
एक बार तो कहते
ब्रज की रज पर दोहे
कविता तुम ऐसी तो न थीं
इग्नोर
जल पर दोहे
इंतजार पर कुछ दोहे
आत्मविजेता
जीता रहूँगा
हनुमत प्रार्थना
मेरी संस्कृति मेरी पहचान
आईने पर दो कविताएं
नए संवत्सर पर दोहे
बसंती दोहे
दिव्य नर्मदा
बच्चे की जेब से झांकती रोटी
माँ तेरे बेटे ने वक्षस्थल पर गोली खाई है
सुनो कश्मीर फिर लौट आओ
मुझे पढ़ना है ऐसी रचना
क्या तुमने कविता लिखी
एक अव्यक्त सा सच
नरी नहीं नारी हूँ
सोचो गर माँ न होती
नव वर्ष -पुरानी यादें नए दायित्व
यादों के हर सिंगार
रचना से रचना तक
साहित्यिक बाजार
सहमे शब्द
सहमे शब्द
लड़की
तांका-12
तांका*-9
मेरा बचपन
तांका-8
ताँका-7
ताँका -5
ताँका -4
ताँका-3
ताँका-2
हे शहर आगे बढ़ो
मन की बात
दीप जले
एक प्रार्थना
चीन से लड़ो लड़ाई
अधूरा जन्मदिन
जब भी फुर्सत मिले
सत्य कुछ फटा सा
जलते रावण की नसीहत
देवी सप्तक
मुझे क्या करना
मेरी रचना
रचना का बाजार
बहुत शोर है
माँ
मुझ से मिलने मत आना
हिंदी मेरी बिंदी
एक अजनबी होता शहर
जिंदगी संघर्ष तेरी
जाग तुझ को दूर जाना
एक अदने की बात
भूख
दाना दुःख है मुझे
कृष्ण तुम पर क्या लिखूं !
वियोग एवम श्रृंगार
साहित्य
राष्ट्र को समर्पित
फिर भी तुम चले गए
क्या होती है स्त्रियां ?
क्यूँ मुझे लगता है ऐसा
आशुतोषी माँ नर्मदा
बड़े खुश हैं हम
पानी बचाना चाहिए
कल का जल
दहकता बुंदेलखंड
क्या मै लिख सकूँगा
महिला मुक्ति कितनी दूर कितनी पास
अपना समझती हूँ मैं
उस पार का जीवन
मेरी तुम
सौन्दर्य के सन्दर्भों का त्यौहार बसंत
अनुत्तरित प्रश्न
काश में तुम्हे पढ़ पाता
बिखराव
बांसती मन
मत रोना
क्योंकि मैं जीवित हूँ।
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
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