Dr. Srimati Tara Singh
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कविता
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कविता
ठाकुर दीपक सिँह कवि
ठाकुर दीपक सिँह कवि
सारी सुध-बुध को खोके
"BADAL RHI HU MAI"
हर कोई बेवफ़ा नहीं होता
सोचता हूँ
सभी रचनाकारों से अनुरोध
तीन परिस्थितियाँ
प्यार के जज़बात रहने दो
क्या ख्याल आता है?
खुद की खुशी से तौल सकती हूँ!
क्यूँ इतना मुस्कुराती हो?
थोङा और प्यार लेते आना..!
गर पूछे कोई
इस जालिम दुनिया से तो बचा लेती
खरीददार भी तू ही हो
ज़रा सा कर ले यकीन
आरक्षण
वेवकूफ बनाने मेँ इन्हे हर्ज कैसा!!
मैं लङूँगा खुद के ख्यालों से
जीत का जूनून
तू प्रेम के धुन में डूबो जाती है
देख तमाशा गजब मचा है
अब तो तुम पछताओगे
गरीब वोट तो यूँ ही तैयार है!
कर्म ढूढ ले खुद के मन्दिर-मस्जिद में
इसी पागलपन को ही प्यार कहते है
प्यार अभी भी बाकी है
एक सच
एक और सरकारी दफ़तर खुलवा दो
उनके लबों पे मेरा नाम आया हैं..
हिन्दुस्तान का गरीब साहब!!
प्यार
POEM- TU HI
POEM-KYU ITNA TADPATI HO
POEM YU HI
dua karta hu
कभी किसी की खामोशी चुराते है
मैनेँ क्या किया
आशियाना
विचार एवं कल्पनायेँ
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
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