Dr. Srimati Tara Singh
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गज़ल
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गज़ल
विश्वनाथ शिरढोणकर
विश्वनाथ शिरढोणकर
रोना !!!
स्मरण - विस्मरण
आज मनाले जाता साल
आदमी के ढंग !!!!!
आत्मा !!
अर्ज - !!!!!
खुदा नाराज है
अब क्या होगा ?
कसम
कुछ लिख लिजिए
चेहरा
पलकें मूंद कर
यादों का पिटारा खोला
अंदाज !!!!!
दीवार
पर्दादारी
नसीब
दीवार
ठहर गयी जिंदगी
लोकतंत्र में तमाशा
स्मरण - विस्मरण !!
कहाँ गये वों ख़त ?
चुनाव का मौसम
शायर और गजल
छाया -काया
पथिक और पथ !!
इनदिनों
इमां नीयत में तब्दील हो गया
अब क्या होगा ?
कुछ बदला है ?
खुद हो के बिका है !!
वक्त !!!!!
कुछ है ?
इन दिनों
जादू कौन सा हैं ?
पत्थर !!!!
रास्ता बदल ले !!!!!
कहाँ गये वों ख़त !!!
आत्मा !!
पुतला
सुनाए जा रहे मेरे ही किस्से इन दिनों
न लफ़्ज ही मिलते है ना कोई तरन्नुम
यादें
पत्थर का जिक्र हुआ तो मोम पिघल गए
पलके मूँद कर
सगळ्यांचं सगळं सगळ्यांसारखंच असतं
थांब
येथे नाही तेथे नाही
माझ्या मते वाया गेले आयुष्य माझे
कधी वाटते आपण जगावे
मी आसक्तीचा इंद्र नाही
असेच आहो आम्ही
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
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