Dr. Srimati Tara Singh
Administrator
Menu
होम
रचनाकार
साहित्य
कविता
गज़ल
गीत
पुस्तक-समीक्षा
कहानी
आलेख
हाइकु
शेर
मुक्तक
व्यंग्य
क्षणिकाएं
लघु-कथा
विविध
E-books
News
Press news
Political news
Paintings
More
Online magazine
रचानाएँ आमंत्रित
Softwares
Website directory
swargvibha forums
Site ranking tool
Contact Us
Audio Books
Online Special Edition
गज़ल
Previous
Next
Home
गज़ल
विपुल त्रिपाठी
विपुल त्रिपाठी
छोड़िये भी जमाने को...ज़माना क्या है
सरकारी पुरस्कारों से डरता हूँ
वक्त और है वफ़ा और है..
आग में कोई जिये या मरे.
दुःख अफसाना नही के तुझ से कहते
एक अफसाने का अंत....
कि तुम मुझको भुला देना इक हादसा समझ के
बदलते खेल सी मिली ज़िन्दगी,और हम बदलते गए
इस क़दर क्यो तनहा रहते हो
कि दिल में मेरे रहा करो.
मोहब्बत के बाद बरबादी भी जरूरी है
ज़िन्दगी ने जब जब मुझे..उठा कर ज़ोर से पटका है
वो दुर्घटना में घायल बदहवास
मंज़िल से धुँधली रोशनी और तिलिस्म जमगाते मिलते है
आज मेरा वक्त आखिरी, और उन्हें काम बहुत है
आज क़यामत की रात है,कल फिज़ाये बदल जायेगी
लोग ज़ख्म नया देंगे
खयालो में तू ना हो.....तो शेर अच्छा नही होता
ज़िन्दगी में आगे बढ़ना...मज़बूरी भी है
इरादा सफर का..पक्का नही लगता
गुजर देखी ना बसर देखा
वज़ूद जिनके दिलो में हो
खेल कुर्सी का हो तो वो.....किसी पे ऐत्बार नही करता
वो जो दिल था मेरा
कोई छोटा बच्चा सोता होगा
उसने दिल्लगी से भी गर पुकारा
माना कभी कभी ये गले से उतरते नही है
धक धक करते है लफ्ज़ मेरे
वो सड़क पे घायल
इस शहर में हर चीज का बाज़ार मिल जायेगा
हाथ लगाओ तो यही हर शीशा कहता है
कभी तुमको थी मुझसे मोहब्बते
मजहब के नाम पे सिरफिरी तालीमे किसने दी है
ज़िन्दगी तेरे खयालो में खूबसूरत सी लगती है
न ज़मी पे मिलें और ना आस्माँ पे मिलें
चिन्ता इश्क़ करने वालों की.....मुझे बेवजह नही है
जिस शमा-ए-इश्क ने हवाओं को हरा दिया
हम बहती हवा है....हमारा वतन-ओ-ठिकाना मत पूछो
के आज फिर दिल में तुझे बुलाने चले गए
कहने को तो अच्छा हुआ...भरम टूट गए
दिल के अलावा आंखों में भी बसा रखा है
बदल रहा है ज़माना पुराने खयालो पे सबर रखिए
पगले इसको तू बाज़ार से नही लाया है
मेरे शांत दिल पे है.....प्यार का हंगामा
बहुत देर तक धुँआ रहा वो लम्हा जो माहताब था
ना मक़्ता मानते है....ना मतला मानते है
जबतक दिल दुखता रहा
गुजर देखी ना बसर देखा
परेशां रहते थे कभी दिले-बेकरार के साथ
ये तो तराशने वाले का हुनर होता है
ये कौन से चाँद की चाँदनी में............आज की रात नहाई है
हमारे इज़हार पर.....उनकी ना ठहरी
आसमान में ही उसने...अपना पैग़ाम रख दिया
बंद हुई आँख तो नज़ारे भी सुबह-ओ-शब के गए
ये उसी का तीर है कि, ये ठिकाना जिसका है
फूल की तरह रोज़ सुबह मुस्कुराते रहे
उसका अपना ही करिश्मा है जादू-ए-गुफ्त्गू है-यूँ है
कभी खुशबू बन के महक उठी
अब तो कहने लगे है सभी.....यार के अलावा भी
इस तरह मुझे अब तेरी अदा लगती है
बिक रहे है दिल यहाँ
खामोश इश्क में.....सवालों के जवाब मत देखा करो
खाम्खा लड़ते है मुझसे,आप करते है कमाल वैसे ही
के सोच समझ भी लीजिये अह्सानो के पीछॆ
हमने आज फिर......ये बताने को कलाम रखा है
तेरा ख्वाब आज मुझे...............यूँ मुक्क्मल कर गया
रिश्तों को तो दूर् तक....निभाया हमने
हम बहती हवा है....हमारा वतन-ओ-ठिकाना मत पूछो
कुत्ते की पुंछ टेढी थी...टेढ़ी है......इधर भी..उधर भी
किस्मत में जो होता और
रास्तों को बदलने में देर कितनी लगती है
hamne aaj fir ye bataane ko kalaam rakhaa hai
koi zakham kahin taazaa hai ab bhi
सज़-धज के हाय जलवे दिखाना भी जरूरी है
बँटती है जब दरबार में...खैरात दोस्तों
इस शहर में सिर्फ़ बाज़ार ही बाज़ार है दोस्तों
की एक तो तेरी ज़ुल्फ ये काली भी कयामत है
इससे पहले की आशना हो जाएँ
जो भी ना चाहा मैंने,वो सब होते रहा
सुना है कि जमाने उसे.......ठहर के देखते हैं
रहते हैं हम तेरी....परछाईयों के साथ
जो मेरे पास नहीं है तो.....तूने ही छीना होगा
रातें कट तो जाती है पर गुजरती नहीं
ऐ फूल मुझको यूँ .......चिढ़ाता क्या है
उसीकी अपनी ज़ुबानी सुनूँगा कि ये क्यूँ है यूँ है
वो देते हैं मुझे ज्ञान.........की यूँ होता तो यूँ होता
खत्म जब........चुनावी मस्ती हो गई
क्यों बेवफ़ाई का...उससे गिला मैंने किया
जब से बिछड़ा है तू हम दर-बदर के हो गए
तेरा ही जिक्र कर के सब
सुना जो ख्वाब में रोटी संग फरिश्ते मिलेंगे
कल चला जाऊँगा तब खूब कर लेना
इंतज़ार में मेरे जब तुम खड़ी थी
जब से हम मिलें हैं,है हर बात का हंगामा
अपने सूटकेस में मेरा सलाम भी कहीं रख लेना
शांत दिख रहा है,ये तो किनारा है
फौलाद का भी.....चूरा बना देता है
पोछ लेना तुम मुझको..गर आँख से छलक आऊँ
गुमशुदा हूँ यारो....मिल जाऊँ तो बता देना
कि हम लुटाते है और वो हिफाज़त करते है
मैं हू...तन्हाई हो,और यादें तेरी हों
डूबा सूरज और साये भी.... चुपचाप उतर के चल दिए
नसीब ने मेहरबानी का.....कभी सिलसिला ना किया
आलमे इश्क ने हर रंग दिखलाया
जहर भी पी लेंगे सनम...ग़र तेरे हिस्से का जहर हो
के सोच समझ भी लीजिये अह्सानो के पीछॆ
ये उसी का तीर है कि, ये ठिकाना जिसका है
चूहा बिल्ली के पंजे में
मेरी रहगुज़र पे पड़े थे कभी..तेरे भी कदम
देश की अपनी सेना है जान तुमको नही देना है
सुना है इश्क में हो जाता है खून-ए-जिगर
आँसुओं से धुलते नहीं है दिल के दाग
लगता मुझको अब.....तेरा ही हर साया है
वो लड़की जिसको मुझसे कोई मतलब ही नही है
मेरी आँखों की बरसातो को पन्नो की स्याही बना डाला
देते जाते हैं हम ये....... पयाम जाते जाते
कि कयामत हम पे गुज़री...यहाँ आते आते
रहता है मुझको तेरा ही...खयाल आते जाते
दिल ने खाया ज़ख्म तो....एक आह निकली
यूँ के फि़तरत मै सबसे, जुदा लाया
भाँप के वो हाल मेरा....हलका सा इशारा करता है
बड़े बड़े महानगरों से दूर्....दिल वो कही और ही खोता है
ना ज़िन्दगी आती है...ना मौत आती है
सुना है बहुत घुट घुट के जी रहे है लोग यहाँ
मैंने जो पूछा क्यों तोड़ा,ये दिल मेरा ऐसे ही
कैसा मिला है तू, ये बता मुझे
मैंने शायरी में बनाई,खयालो की बस्ती एक दिन
हम थे दम था गम था
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
Click to view