Dr. Srimati Tara Singh
Administrator
Menu
होम
रचनाकार
साहित्य
कविता
गज़ल
गीत
पुस्तक-समीक्षा
कहानी
आलेख
हाइकु
शेर
मुक्तक
व्यंग्य
क्षणिकाएं
लघु-कथा
विविध
E-books
News
Press news
Political news
Paintings
More
Online magazine
रचानाएँ आमंत्रित
Softwares
Website directory
swargvibha forums
Site ranking tool
Contact Us
Audio Books
Online Special Edition
कविता
Previous
Next
Home
कविता
संतोष सिंह क्षात्र
संतोष सिंह क्षात्र
मकरसंक्रांति
हे रघुनंदन
हे भारत माता, उठो
हे भारत माता, उठो
गण से तंत्र
गण से तंत्र
वसंत ऋतु आयी
रंगराज
गाँव की गौरैया
नववर्ष (संवत्सर)
परमात्मा रोया होगा
कोरोना का आतंक
यूँ ही मुस्कुरा लिया करते हैं
घुलती मायूसी
वसंत लौट रहा मुड़कर भुवन को
मौन हूँ पर अनभिज्ञ नहीं
पथ, पलायन और प्रवासी
कितना अच्छा लगता है
झुमता सावन आ रहा है
मर्यादा और रक्षाबंधन
जयकार हो वतन
युगपुरुष अटलजी
मगन अयोध्या आज
खिचड़ी की महक
जिन्होंने देश पर लूटा दी धधकती जवानी
जिन्होंने देश पर लूटा दी धधकती जवानी
व्याकुल गांव
रंग अंजुली में भरे दिवाकर
यदि प्रेम को तुम प्रेम समझते
यदि प्रेम को तुम प्रेम समझते
तुम्हारे राम-हमारे राम
दुःख ही उकेरा सुख के पथ सदा
श्याम घटा घनघोर
नेता -नीति-नियत
कब-तक भागोगे तुम
“ दबे पांव आये,ऋतुपति
“कण-कण से प्रस्फुटित सावन होगया”
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
Click to view