Dr. Srimati Tara Singh
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मुक्तक
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मुक्तक
अमरेश सिंह भदौरिया
अमरेश सिंह भदौरिया
स्वप्न हमारे
साथ मेरे तुम रहो
सबब जिंदगी का सिर्फ़
मन चाहा कब हो पाता है
मौसम में नमी और आग दिलों में
अजब अंदाज़ निराला है
अब दिल लगाना है अलग
दर्द दिल में था गहरा
कहीं सम्मान गिरवी है
बस हमसफ़र थे रात भर
शाम ढलने लगी है चले आइये
सफ़र सुहाना अगर चाहिए
आपका हँसना अलग और
मेरी शायरी का इतना तो
समर्पण हमें वो चाहिए
समर्पण हमें वो चाहिए
चंद सपने और कुछ ख्वाहिशें
वक़्त बीते की कहानी कौन लिखता
किसी को किसी की जरूरत न
दिन घटते गये उम्र बढ़ती गई
जब हृदय बोझिल हुआ
नज़दीकियाँ हों साथ ही फ़ासला
मुक्तक
वहम मन में कब से ये पाले हुए हैं
मेरा साथ निभाने का शुक्रिया
आपको मैं अपनी जागीर समझ बैठा
मेरी उम्मीद का सावन
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ
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