कश्मीरी रामायण:रामावतारचारित
डाo शिबन कृष्ण रैणा
कश्मीरी भाषा में रचित रामायणों की संख्या लगभग सात है। इनमें से सर्वाधिक लोकप्रिय ‘‘रामवतरचरित“ है। इसका रचनाकाल 1847 के आसपास माना जाता है और इसके रचयिता कुर्यग्राम/कश्मीर निवासी श्री प्रकाशराम हैं।
सन् 1965 में जम्मू व कश्मीर प्रदेश की कल्चरल (साहित्य) अकादमी ने ‘रामावतारचरित’ को ‘लवकुश-चरित’ समेत एक ही जिल्द में प्रकाशित किया है। कश्मीरी नस्तालीक लिपि में लिखी 252 पृष्ठों की इस रामायण का संपादन/परिमार्जन का कार्य कश्मीरी-संस्कृत विद्वान् डा० बलजिन्नाथ पंडित ने किया है। मैंने इस बहुचर्चित रामायण का भुवन वाणी ट्रस्ट, लखनऊ के लिए सानुवाद देवनागरी में लिप्यंतरण किया है। यह कार्य मैं ने प्रभु श्रीनाथजी की नगरी श्रीनाथद्वारा में परिपूर्ण किया और इस बहुमूल्य कार्य को सम्पन्न करने में मुझे लगभग पांच वर्ष लगे। 481 पृष्ठों वाले इस ग्रन्थ की सुन्दर प्रस्तावना डा० कर्णसिंह जी ने लिखी है और इस अनुवाद-कार्य के लिए 1983 में बिहार राजभाषा विभाग, पटना द्वारा मुझे ताम्रपत्र से सम्मानित भी किया गया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने भी अभिशंसा-पत्र भेंट किया। यह अभिशंसा-पत्र आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के बहुमूल्य हस्ताक्षरों से सुसज्जित है।
मेरी हार्दिक इच्छा थी कि इस रामायण का पेपर-बैक-संस्करण भी प्रकाशित हो। केवल अनुवाद वाला अंश, ताकि कश्मीरी रामायण ‘रामवतारचरित’ की भक्तिरस से परिपूर्ण वाणी अधिक-से-अधिक रामायण-प्रेमियों तक पहुँच सके। कश्मीरी पंडितों के (कश्यप-भूमि) कश्मीर से विस्थापन/निर्वासन ने इस समुदाय की साहित्यिक-सांस्कृतिक संपदा को जो क्षति पहुंचायी है, वह सर्वविदित है। कश्मीरी रामायण ‘रामवतारचरित’ का यह पेपरबैक संस्करण इस संपदा को अक्षुण्ण रखने का एक विनम्र प्रयास है।लोकोदय प्रकाशन,लखनऊ के प्रति आभार व्यक्त करना अनुचित न रहेगा जिसने प्रकाशन के इस संकट के दौर में इस अनुपम पुस्तक को प्रकाशित करने के मेरे प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किया।कश्मीर की आदि संत-कवयित्री ‘ललद्यद’ (14वीं शती) पर भी इसी तरह का एक पेपरबैक संस्करण निकालने की योजना थी, जिसे वनिका प्रकाशन ने पूरा कर दिया।
धार्मिक आस्था से जुडी हमारे देश की रामायण-परम्परा,विशेषकर ‘रामचरितमानस’को लेकर जो वितंडावाद इस समय देश में फैला हुआ है, उसके सन्दर्भ में कश्मीरी रामायण ‘रामावातारचरित’ की महिमा का उल्लेख करना और उससे परिचित होना अनुचित न होगा।
"राम! तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है॥"(मैथिलीशरण गुप्त)
MA(HINDI&ENGLISH)PhD
Former Fellow,IIAS,Rashtrapati Nivas,Shimla
Ex-Member,Hindi Salahkar Samiti,Ministry of Law & Justice
(Govt. of India)
SENIOR FELLOW,MINISTRY OF CULTURE
(GOVT.OF INDIA)
2/537 Aravali Vihar(Alwar)
Rajasthan 301001
Contact Nos; +919414216124, 01442360124 and +918209074186
Email: skraina123@gmail.com,
shibenraina.blogspot.com
http://www.setumag.com/2016/07/author-shiben-krishen-raina.htm
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