श्री पंकजजी,
‘विश्वगाथा’ का नया जुलाई-अगस्त-सितंबर 2023 का अंक भी सीखने-समझने के लिए कई नई जानकारियाँ दे रहा है।
श्री जितेन्द्रप्रसाद माथुर ने राजस्थान के लोकगीत से संबंधित आलेख में उपयोगी जानकारी प्रस्तुत की है। मेरे परिवार के अधिकांश सदस्य राजस्थान से जुड़े हुए हैं, इसलिए यह लेख रुचिकर लगा।
प्रतिभा सिंह ने अपनी लघुकथा ‘कन्या-पूजन’ में मात्र रस्म निभाने पर अच्छा चुटीला व्यंग कसा है। विनोदप्रसाद की लघुकथा ‘विरोधाभास’ में बहुत पैने शब्दों में हकीकत को व्यक्त किया गया है। टिकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’ की लघुकथा ‘सेवा’ भी पठनीय है।
निरूपमा सिंह की कहानी ‘संजीवनी बूटी’ बहुत मार्मिक है। आजादी के आन्दोलनों के दौरान सच्चे वाकये पर आधारित सुशील स्वतंत्र की कहानी ‘राम-रहीम हथकरघा’ भी पठनीय है। डॉ. ज्योत्सना सिंह की दिलचस्प कहानी ‘जिल्द बंद कॉपी’ निश्चित ही किसी सच्ची घटना को आधार बनाकर लिखी गई है।
कहानीकार आलोककुमार सातपुते की कहानी ‘रेशम का कीड़ा’ में एक नए तरह के अद्भुत पात्र की कल्पना की गई है। लेखिका सावित्री शर्मा ‘सवि’ ने उनकी कहानी ‘एक नई सुबह’ में संतानहीन दंपतियों के लिए एक उचित व सही मार्ग अपनाने का मार्ग सुझाया है। इन दिनों महानगरों के कई बड़े अस्पतालों में चल रही विभिन्न प्रकार की धांधलियों का कच्चा चिट्ठा विवेक द्वेदी ने उनकी कहानी ‘भरोसा’ में खोल कर रख दिया है।
वंदना गुप्ता द्वारा डॉ. सुनीता का लिया गया साक्षात्कार पठनीय व रोचक है। डॉ. सुनीता ने बताया कि अब तक की उनकी साहित्यिक यात्रा में कौन-कौनसे निर्णायक पड़ाव रहे हैं। इसी प्रकार प्रियंवदा पाण्डेय के द्वारा हिमाचल प्रदेश के गंगाराम राजी से लिए गए साक्षात्कार में भी इन प्रसिद्ध लेखक के साहित्यिक योगदान से संबंधित कई महत्वपूर्ण तथ्य मालूम हुए।
प्रीता व्यास के यात्रा-आलेख ‘मध्यरात्रि का सन्नाटा और कालोनारंग’ से बाली द्वीप में प्रचलित एक अद्भुत नृत्य-नाटिका के बारे में जानने को मिला।
महावीर राजी के संस्मरण ‘एक और गुलफाम’ अद्भुत हैं। उसी प्रकार से एम. जोशी हिमानी के संस्मरण ‘वो अद्भुत दाम्पत्य’ मार्मिक है।
के. पी. अनमोल व अशोक शर्मा की गजलें उम्दा हैं। डॉ. मनोहर अभय का नवगीत भी मंत्रमुग्ध करनेवाला है। विजय राही की कविता ‘देवरानी-जेठानी’ में चले आ रहे सामाजिक तानेबाने का निरूपण बेहतरीन ढंग से किया है।
राजेन्द्रसिंह गहलोत का ‘किस्सा, किसागो एवं किस्सागोई’ एक सारगर्भित लेख है, जिसमें कहानी विधा पर शोधपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की गई है।
समीक्षाएँ पढ कर लगता है कि पुस्तक ‘पराजिता का आत्मकथ्य’ अपने ढंग की अलग रचना होना चाहिए। रानी कैकई की विवशताएँ उसमें स्पष्ट की गई होंगी।
धर्मपाल महेंद्र जैन का व्यंग ‘एक चांदीवाला, अनेक चांदीलाल’ गुद्गुदानेवाला है। इसी तरह आशीष शुक्ला के व्यंग ‘घाट’ में वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य पर अच्छे ढंग से तंज कसा गया है।
अंक तैयार करने में आपके परिश्रम को नमन करते हुए, आभार।
राजेन्द्र निगम, अहमदाबाद
9374978556
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