सुप्रभात जी।कहानी सुनी सुनाई। देने के लिए दान, लेने के लिए ज्ञान और त्यागने के लिए अभिमान श्रेष्ठ है। उस प्रभु ने आपको सामर्थ्यवान बनाया है तो अवसर मिलने पर अपनी सामर्थ्यानुसार परमार्थ और परोपकार में अवश्य दान करो। आपका दान किसी और के लिए नहीं होता अपितु समय आने पर वो आपके पास ही कई गुना लौटकर आता है।
शास्त्रों का मत है कि रत्न यदि कीचड़ में भी पड़े हों तो उन्हें वहाँ से भी उठा लेना चाहिए। उसी प्रकार ज्ञान जहाँ से भी मिले अवश्य ग्रहण करना चाहिए। यद्यपि हम बहुत कुछ जानते हैं पर सब कुछ कभी नहीं जानते हैं। हर किसी को परमात्मा ने कुछ न कुछ विशेष गुण प्रदान किया गया है। हर व्यक्ति का जीवन के प्रति अपना एक अनुभव होता है इसलिए जब और जहाँ अवसर मिले ज्ञान लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।
जीवन में सब कुछ त्यागने के बावजूद भी यदि अभिमान शेष रहा तो समझो पतन सुनिश्चित है। इसीलिए महापुरुषों ने आदेश किया कि यदि जीवन में त्यागने जैसा कुछ है तो अभिमान है। सर्व प्रथम अभिमान का त्याग करें क्योंकि अभिमान के त्याग के बाद कोई भी वस्तु, पदार्थ अथवा व्यक्ति आपके बंधन का कारण नहीं बन सकता।
सुरपति दास
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