कवि राजवीर सिकरवार
dsetnopSorf421ag05827uh5my2r9a023u5662f7n 1J15a0gm7al if422, ·
जिंदगी लिखाई व पढ़ाई में चली गई-
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
बाल उम्र बोल-चाल अ,आ,इ,ई सीखने में,
पट्टी पै रँगाई व कढ़ाई में चली गई ।
बच्चों की सिखाई व चढ़ाई में चली गई ।
और साथ-साथ काव्य मंचों का लगा था शौक,
बाकी उम्र छंदों की गढा़ई में चली गई ।
लेखनी रुकी नहीं झुकी नहीं व "भारती" की,
जिंदगी लिखाई व पढ़ाई में चली गई ।
_________________________________
सबलगढ़ चम्बलांचल मुरैना
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY