आज आदरणीय वरिष्ठ कवि Naresh Saxena जी की दो और लोकप्रिय कविताओं को यहाँ लगा रहा हूँ। प्रिय पाठकों से इस बारे में उनका बेशकीमती मंतव्य जानना चाहूंगा --
1.समुद्र पर हो रही है बारिश (कविता)
__________
क्या करे समुद्र
क्या करे इतने सारे नमक का
कितनी नदियाँ आईं और कहाँ खो गईं
क्या पता
कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं
इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं
फिर भी संसार की सारी नदियाँ
धरती का सारा नमक लिए
उसी की तरफ़ दौड़ी चली आ रही हैं
तो क्या करे
कैसे पुकारे
मीठे पानी में रहने वाली मछलियों को
प्यासों को क्या मुँह दिखाए
कहाँ जाकर डूब मरे
ख़ुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
समुद्र पर हो रही है बारिश
नमक किसे नहीं चाहिए
लेकिन सबकी ज़रूरत का नमक वह
अकेला ही क्यों ढोए
क्या गुरुत्त्वाकर्षण के विरुद्ध
उसके उछाल की सज़ा है यह
या धरती से तीन गुना होने की प्रतिक्रिया
कोई नहीं जानता
उसकी प्राचीन स्मृतियों में नमक है या नहीं
नमक नहीं है उसके स्वप्न में
मुझे पता है
मैं बचपन से उसकी एक चम्मच चीनी
की इच्छा के बारे में सोचता हूँ
पछाड़ें खा रहा है
मेरे तीन चौथाई शरीर में समुद्र
अभी-अभी बादल
अभी-अभी बर्फ़
अभी-अभी बर्फ़
अभी-अभी बादल।
[[समुद्र पर हो रही है बारिश (कविता) / नरेश सक्सेना]]
2. पार (कविता)
-----------
पुल पार करने से
पुल पार होता है
नदी पार नहीं होती
नदी पार नहीं होती नदी में धँसे बिना
नदी में धँसे बिना
पुल का अर्थ भी समझ में नहीं आता
नदी में धँसे बिना
पुल पार करने से
पुल पार नहीं होता
सिर्फ़ लोहा-लंगड़ पार होता है
कुछ भी नहीं होता पार
नदी में धँसे बिना
न पुल पार होता है
न नदी पार होती है।
[[कविता ' पार ' / नरेश सक्सेना]]
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY