Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अगर एक रंग ही हो जिन्दगी

 
अगर एक रंग ही हो जिन्दगी, नीरस सी हो जाती है ज़िन्दगी।
काले के सामने सफेद रंग, सफेद का सार बताती है ज़िन्दगी।
कभी कसैली तो हो कभी खारी, कभी मीठी चरपरी स्वाद आता,
खट्टे का स्वाद चख चख कर ही, चटपटी सी हो पाती है ज़िन्दगी।
देखा है प्रकृति को रंग बिरंगी सी, एक रंग होती तो मन भर जाता,
सावन का अन्धा हरा हरा बोलता, रेगिस्तान सी हो जाती जिन्दगी।
चुनौतियां सामने तो जोश आता, जीने का मकसद जिन्दगी को भाता,
चौराहे पर खडे हो रास्ते को चुनना, मन्जिल पर तब पहुंचाती है ज़िन्दगी।
कसमें वादे हों या शिकवे शिकायत, अपनों से होते हैं, अन्जानो से नहीं,
अपनों से प्यार- अपनों की बेरूखी, सबकी पहचान करा देती है ज़िन्दगी।
सादगी का मतलब तन्हां नहीं होता, मजबूरी में भूखा रहना व्रत नहीं होता।
खाने को व्यंजन हो चुनने की आज़ादी, व्रत का महत्व तब समझाती ज़िन्दगी।

अ कीर्ति वर्द्धन

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