Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अर्थ तन्त्र

 
बढने लगी हैं दूरियाँ अब, रिश्तों के संसार में,
मिलने लगा महत्व जब, अर्थ को परिवार में।
सम्बन्धों का आधार भी, धन आश्रित हो गया,
दिखने लगी हैं तल्खियाँ, धनी के व्यवहार में।
बाँट कर खाना पीना, सुख दुख सबके एक थे,
बँटने लगी चौखटें घर घर, आज के व्यापार में।
खिंचने लगी दीवार घर में, माँ- बाप बँटने लगे,
बचपन बिलख कर रो रहा, बडों की तकरार में।
दादा दादी जुदा हुये, ताऊ चाचा भी बिखर गये,
बिखर गया परिवार सारा, बस पैसों के प्यार में।

अ कीर्ति वर्द्धन

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