बचपन की आँखों मे सपने देख रहा हूँ,
पचपन को आहें भरते देख रहा हूँ।
खिला हुआ बचपन जैसे फूल डाली पर,
पचपन को शाम ढला सा देख रहा हूँ।
अ कीर्ति वर्द्धन
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बचपन की आँखों मे सपने देख रहा हूँ,
पचपन को आहें भरते देख रहा हूँ।
खिला हुआ बचपन जैसे फूल डाली पर,
पचपन को शाम ढला सा देख रहा हूँ।
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