Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बचपन की आँखों मे सपने देख रहा हूँ

 

बचपन की आँखों मे सपने देख रहा हूँ,

पचपन को आहें भरते देख रहा हूँ।

खिला हुआ बचपन जैसे फूल डाली पर,
पचपन को शाम ढला सा देख रहा हूँ।

अ कीर्ति वर्द्धन

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