बदलाव
चलो कुछ बदलाव लाते हैं,
एक नई रीत चलाते हैं।
बेटी को रखेंगे घर पर,
दामाद विदा कर लाते हैं।
देखेंगे क्या बदला घर में,
कौन-कौन तब इतराती है?
अक्सर देखा आज बेटियां,
संपत्ति पर लड़ जाती हैं,
भाई को ज्यादा मिल जाए,
कोर्ट कचहरी जाती हैं।
रिश्तो को ठेंगे पर रख,
निज स्वार्थ में रंग जाती हैं।
घर जमाई जो भी होते,
इज्जत कुत्तों सी रहती है,
लड़की गई विदा होकर तो,
घर में लक्ष्मी कहलाती है।
आधुनिकता का पहनकर चोला
मनमानी करती जाती है।
दूर देश में बैठी बेटी,
चिंता मात-पिता की करती,
पर जोरू का गुलाम बताकर,
भाई को अपमानित करती है।
पति को अपने वश में करके,
सास ससुर का मान न करती।
नियम चाहे कुछ भी बना लो,
उन पर चलना सीखो तुम,
विदा करो बेटे को अपने,
या बहू को घर लाओ तुम।
सास ससुर भी मात पिता है,
संस्कारों को अपना लो तुम।
अ कीर्ति वर्द्धन
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