उड रही हैं बेटियाँ, उस उडान की तरफ,
अन्जान जिसकी मंजिल, मुकाम की तरफ|
विस्तृत गगन सामने, कोमल पर लिये,
धरा छोड उड रही, आसमान की तरफ|
है गगन विशाल सामने, सूरज भी जल रहा,
उडने की ललक है, मन्जिल का नही पता|
हों बाज से प़ंख, और वापसी का भान हो,
आगे बढें मगर बेटियों को, इतना तो दो जता|
अ कीर्ति वर्द्धन
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY