Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बेटियाँ

 

उड रही हैं बेटियाँ, उस उडान की तरफ,

अन्जान जिसकी मंजिल, मुकाम की तरफ|

विस्तृत गगन सामने, कोमल पर लिये,

धरा छोड उड रही, आसमान की तरफ|

है गगन विशाल सामने, सूरज भी जल रहा,

उडने की ललक है, मन्जिल का नही पता|

हों बाज से प़ंख, और वापसी का भान हो,

आगे बढें मगर बेटियों को, इतना तो दो जता|
अ कीर्ति वर्द्धन


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