चन्द खनकते सिक्कों में, गद्दारों को बिकते देखा,
इतिहास पढा भारत का, जयचंदों को बिकते देखा।
कुछ चढ़ जाते फांसी पर, कुछ सत्ता में भागीदारी,
चन्द कांच के टूकडों को, हीरे मोती सा बिकते देखा।
जब तक न पहचान हमें थी, अपना आदर्श माना,
झूठ फरेब की उनकी बातें, उसको ही सच जाना।
जब जब दंगें हुए देश में, हमको हथियार बनाया,
श्वेत वस्त्र में काला दिल, चरित्र मसीहा का जाना।
अ कीर्ति वर्द्धन
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