वो चिट्ठियों का दौर पुराना हो गया,
जबसे मोबाइल से याराना हो गया।
खत्म हुई बातें इन्तजार की खत के,
अब तो रूबरू इश्कियाना हो गया।
निगाहें दर पर डाकिये की इन्तजार,
खत का किस्सा गुजरा जमाना हो गया।
पढ़ते थे वह सब भी जो लिखा ही नहीं,
छिप छिप कर पढ़ना फ़साना हो गया।
कितनी बार भिगोया पढ़कर आंखों को,
रात भर जगना, किस्सा पुराना हो गया।
इश्क मोहब्बत प्यार की बातें जो लिखी नहीं,
पढ़कर ही वो आशिक मेरा दीवाना हो गया।
अ कीर्ति वर्द्धन
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