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कोरोनाकाल
यह कैसी विपदा आन पड़ी है
मुश्किल में निज जान पड़ी है।
अपना साया खुद से कतराता,
आफत अपनी पहचान पड़ी है।
दर्द बांटने कोई नहीं आता,
नगर गांव में पसरा सन्नाटा।
श्मशानों पर भीड़ बहुत है,
अपना वहां कोई नहीं पाता।
मृतप्राय सी संवेदनाएं हो गयी,
नयन शुष्क भावनाएं खो गयी।
तन्हां तन्हां छिप छिप कर बैठे,
आंखों की निंदिया कहां सो गयी।
दरवाजे पर नजर गडाये,
कोई आकर हमें बुलाये।
नहीं कोई आता है भीतर,
शुष्क नयन से अश्रु बहाये।
विपत काल में कुछ मतवाले,
मानवता के बन कर रखवाले
घूम घूम कर गली नगर गांव में,
जांच कर रहे कुछ हिम्मत वाले।
चौराहों पर पुलिस खड़ी है,
उनकी ड्यूटी बड़ी कड़ी है।
खुद की चिन्ता से ज्यादा,
आपकी चिन्ता उन्हें पड़ी है।
निज घर में ही बैठे बैठे,
उनके लिए दुवाएं करना।
आवश्यक सेवाओं में शामिल,
स्वस्थ रहें ये कामना करना।
अ कीर्ति वर्द्धन
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