Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक चेहरे पर हैं दस बीस चेहरे

 
एक चेहरे पर हैं दस बीस चेहरे, हर आदमी मे दस बीस आदमी।
कौन जीता है एक किरदार यहाँ, दस बीस किरदार जी रहा आदमी।
देखता बार बार बदलकर मुखौटा, नये किरदार में जीने की चाह,
उलझ गया मुखौटो के जाल में, अपनी ही पहचान भूल गया आदमी।

अ कीर्ति वर्द्धन




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