गरीब को भिखारी मत कहो। गरीबी मजबूरी है और भिखारी मनोवृत्ति है। मृगमरीचिका बहुत दुखदायी होती है इससे बचो। शब्द बेजान हैं मगर मारक क्षमता रखते हैं। किसने कब-कहाँ, क्यों- किस शब्द का प्रयोग किया, इससे ही इतिहास बन जाता है। अर्थ अनर्थ कुअर्थ सुअर्थ कैसे भी कहो, लिखा गया अमिट होता है। व्याख्याओं को सुविधानुसार करोगे या सार्वभौमिक आधार पर, यही मूल्यांकन होगा जिसे इतिहास जीवन्त रखेगा। आज कुछ महान महत्वपूर्ण विद्वान ऐसे ही कुछ कारणों से काल के गर्त मे खो गये। ऐसा नही कि उनमे योग्यता अथवा क्षमता की कमी थी अपितु कुछ नजदीकी व्याख्याकार चाटूकार पत्तलकारों ने उन्हें सच कहने सहने और समझने से भटकाकर मृगमरीचिका मे फँसा दिया। यथार्थ जानना और उसके साथ कदमताल करके अपना मार्ग प्रशस्त करना भी कला है।
अ कीर्ति वर्द्धन
53 महालक्ष्मी एनक्लेव
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