गृहलक्ष्मी
सुख दुख के ताने बानो से, जीवन वस्त्र सदा बुनती हो,
चुनकर कंटक सारे पथ के, मेरी सुगम राह चुनती हो।
तुमसे ही तो जीवन मेरा, तुम बिन घर कैसा घर है,
जीवन के सारे झंझावात को, रूई सा तुम धुनती हो।
अ कीर्ति वर्द्धन
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