Kirtivardhan Agarwal
जब भी तन्हा रही अकेली, सर्दी की सर्द रजाई में,
याद पिया की आने लगी, रातों की ठंडी तन्हाई में।
जब भी गुजरी उपवन से, गर्मी की गर्म इंतहाई में,
याद पिया की आने लगी, अमुवा की अमुवाई में।
जब भी चाहा रात गुजारूं, पूनम की मधुरिम रातों में,
याद पिया की आने लगी, शीतलता की अगुवाई में।
सखी सहेली संग जब बैठूं, हंसी ठिठौली रूसवा होती,
याद पिया की आने लगी, सखियों की रूसवाई में।
अ कीर्ति वर्द्धन
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