Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जब कभी मन मे व्यथा हो

 
जब कभी मन मे व्यथा हो
आँसूओं का संग जुदा हो
बात मन की कह सको ना
तब मुझे तुम याद करना|

मुझसे तुम संवाद करना
व्यक्त सब जज्बात करना
मै सुनूँगा सब धीर रखकर
और मार्ग भी प्रशस्त करूँगा|

जानता हूँ बहुत कठिन यह
गैर से निज जज्बात कहना
पीर जब नासूर बनने लगे
बेहतर होता उपचार करना|

है यही बस वश मे अपने
दीप बन जल सकूँ तम मिटाऊँ
खुद की खातिर जी चुका हूँ
काम किसी के अब मै आऊँ|

अ कीर्ति वर्द्धन

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