बहते दरिया, झील समन्दर, सब पानी की खान हैं,
फिर भी प्यासा मरता मानव, चिन्तित हर इन्सान है|
बन्द किये तालाब सरोवर, धरा बनायी वृक्ष विहीन,
रसायनों का प्रयोग बढा, जल दूषित करता बेईमान है|
कंकरीट के बनाकर जंगल, प्रगतिशील समझता है,
कुदरत से खिलवाड कर रहा, मानव कितना नादान है|
वायुमण्डल दूषित कर डाला, होती अब तेजाबी बारिश,
यज्ञ हवन बन्द कर डाले, यह कैसी ऋषी सन्तान है?
अ कीर्ति वर्धन
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