Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जिन्दगी

 
जिन्दगी हो चार दिन या शतायु बनती रहे,
मन में प्रसन्नता रहे और जिन्दगी बढती रहे।
गम जीवन में रहें, खुशियाँ भी संग संग चलें,
रात और दिन संग रहते, जिन्दगी चलती रहे।
कहता रहा हूँ अकेला, तन्हाई संग संग रहे,
तन्हां जीवन, यादें संग हों, जिन्दगी हंसती रहे।
उपवन की शोभा फूल से, कांटे सुरक्षा में सदा,
फूल और कांटो सी जिन्दगी, खुश्बू बिखरती रहे।
काम आँऊ मैं किसी के, जीवन सार्थक बन सके,
मानवता उर में रहे, जिन्दगी खिलखिलाती रहे।
हो अन्धेरा ज्ञान का, कहीं अज्ञान का प्रचार हो,
ज्ञान दीप बनकर जलूँ, जिन्दगी संवरती रहे।
क्या कहा, किसने कहा, द्वेष किसके दिल में था,
बदले की भावना को, जिन्दगी बिसराती रहे।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ