Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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किरदार रंगमंच पर, निभा रहे हैं लोग

 
किरदार रंगमंच पर, निभा रहे हैं लोग,
अलग अलग रंग में, आ जा रहे हैं लोग।
बचपन जवानी बुढ़ापा, एक ही शख्स है,
फिर भी अलग क्यों,नजर आ रहे हैं लोग।
शख्स था अकेला, मुखौटा जुदा जुदा,
भाई पति बेटा, था किरदार जुदा जुदा।
बनता कहीं गुरू, कहीं शिष्य भी वही,
पिता और पति का, व्यवहार जुदा जुदा।
कठपुतली तो बेजान, उंगलियों से नाचती,
अपने हुनर की पहचान, कुछ भी न जानती।
इन्सान मात दे रहा, गिरगिट को रंग बदल,
नफरत- प्यार संग संग, गिरगिट न ठानती।
अ कीर्ति वर्द्धन

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