कोई खुद को जख्मी कहता, कोई घायल बतलाता,
भांति-भांति के कवि व शायर, कोई बवंडर बतलाता।
बेवफा भी कहते खुद को, हमदर्द बने कुछ घूमा करते,
जिसका वफ़ा से न कोई नाता, वफादार वो बतलाता।
सांस नहीं ली बिना इजाजत, खुद आजाद कहा करते,
नहीं जानता हंसना गाना, वह उत्सव खुद को बतलाता।
जाने यह कैसी हवा चली, नामों में उपनाम लगाने की,
केरल में रहता जो शायर, आजमगढी खुद को बतलाता।
अ कीर्ति वर्द्धन
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