कुंठाएं जीवन में हों, मानव को डस लेती हैं,
सोच दूसरे को बेहतर, खुद को डस लेती हैं।
क्या प्रभु ने दिया उसे, जो अपने पास नहीं है,
इच्छाओं की नागिन, तन मन को डस लेती है।
क्यों नारी सिन्दूर लगाए, क्यों माथे पर बिंदिया,
क्यों चाहत में चैन उड़ाए, क्यों रातों की निंदिया?
क्यों बंधन नारी पर हो, खुद नारी सवाल उठाती,
नहीं सोचती पुरुष हुआ, क्यों घर खातिर चिंदिया?
अ कीर्ति वर्द्धन
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY