मंदिर-मस्जिद धर्म सिखाते, पाप सिखाती मधुशाला,
दो घूँट हाला घट भीतर, मानव बन जाता मतवाला।
चूहा खुद को शेर समझकर, पत्नी पर ही हाथ उठाता,
बच्चे भूखे ही सो जाते, जहाँ पसन्द हाला का प्याला।
भेदभाव न प्रभु करते, जो कोई उनकी शरण में आता,
मंदिर में आकर के देखो, मानवता है धर्म निराला।
मस्जिद की भी बात समझ लो,अल्लाह का पैगाम अनूठा,
दीन-दुःखी की खिदमत कर लो, कहता है अल्लाहताला।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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