Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं बनाता रोटी रूमाली

 
मैं बनाता रोटी रूमाली, आकर तो देखिए,
हैं बहुत मुलायम यह, खाकर तो देखिए।
हैं बहुत नाज़ मुझको, अपने हुनर पर जान लो,
आप भी चाहें तो एकबार, आजमाकर देखिए।
भीख की रोटी मिले, मैनें कभी चाहत नही की,
भावनायें मैंने किसी की, कभी आहत नहीं की।
हूं बहुत खुद्दार, मेहनत कर कमाता हूं मैं,
निज मुस्कराहट के लिए गलत तिजारत नहीं की।

अ कीर्ति वर्द्धन

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