Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरा मन तो प्यासा है

 

बरसेगा जल बहुत गगन से, मेरा मन तो प्यासा है,
विरह वेदना तडफाती है, नयन दरस को प्यासा है।
रहा किनारे बैठ समन्दर, अथाह जल राशी देखी,
दो कतरा भी पी न सकूं, मन प्यासा का प्यासा है।

अ कीर्ति वर्द्धन

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